गुरुवार, 25 अगस्त 2016

 उसकी कमीज  मेरी कमीज से उज़ली कैसे

वह बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है तो  कनिष्ठ व् चपरासी के सामने शेर बन   )


मध्यवर्गीय  परिवार का सदस्य भी  एक अजीब  सा जीव होता है ,क्युकी एक और  उसमे उच्च वर्ग का अहंकार तो दूसरी और निम्न वर्ग की दीनता होती है। अहंकार और दीनता से मिलकर बना उसका व्यक्तित्व बड़ा ही विचित्र होता है। वह बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है तो  अपने से कनिष्ठ व् चपरासी के सामने शेर बन जाता है। मज़ेदार बात जब होती है जब वो अपने से कनिष्ठ को ज्यादा सुख पूर्वक बैठे देख ले। तुरंत ही उसके पेट में गुड गुड गुड चालू हो जाता है। कि  उसकी कुर्सी मेरी कुर्सी से अच्छी क्यू …,,,,,,?  ऐसे ही बात हरिशंकर परसाई जी ने अपने एक व्यंग में लिखा था।
 मैंने सामन्यतः देखा है की आज भी लोग गुलामी की  मानसिकता    से ऊपर नही उठ पाये है ,इनके लिए अच्छा काम करके ,लोगो की दिल जीत कर साहबी करना नही आता। ऐसे लोग लोगो को परेशान करके रुआब गाठ अपना सिक्का जमाना  चाहते है।
 बिचारे नही जानते है  की उनकी साहबी को लोग उनके कुर्सी के सामने खड़े रहने तक ही  मानते है। 
 कुर्सी के पीछे   हंसी -मज़ाक के लिए  वे रोजाना  के  विषय है।
 आज  काम करने का युग है। काम करने वाले की इज़्ज़त है न की काम को लटकाने  हेतु  नियम खोजने वालो की। भारत में ढीला शासन की बदनामी कराने वाले ऐसे ही लोग है शामिल है  ।
सरकारी तंत्र में लीडरशिप की बात यदि करे तो मैंने अनेको अधिकारी को जो की जिम्मेदार पदो के शीर्ष  में  बैठे हुए रहते है ,को अपने टेबल में फाइलों के ढेरो के बीच चिड़चिड़ाते ,बौखलाते  हुए  बैठा  पाता हु।  फाइल को  वे न तो यस ही कर पाते  है  और न ही नो कर पाने की हिम्मत   है। डर  अलग बैठा है की फस न जाऊ।
कोई सामने आया  तो कटकन्ने कुत्ते जैसे भोक दिया ,नेता आया तो पूछ हिला दिया।
 ऐसे लोग  न तो फायर ही कर पाते है और न ही उसे झेल पाते है।  वे  भगवान  के भरोसे आगे ही आगे बढ़ते जाते है। ऐसे लोग  सोचते है की उनके सारे कुकृत्य दूसरे की सर में चढ़ जाये। और वह स्वयं  साफ सुथरा  सत्यवादी हरिस्चन्द्र की भांति  दीखता रहे" भैया।  स्वयं में तो दम नही और सोच में  हम किसी से कम नही "     और ऐसे ही इनकी जिंदगी कट जाती है। 

Saturday, 24 January 2015

 बाबू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुयी....क्या आप जानते है ?आज के ज़माने में अगर कोई भी सरकारी काम  किसी से निकलवाना है तो बाबू भइया को खुश रखना आवश्यक है। मुझे लगा की इस शब्द की उत्पत्ति क्यों और कहा  से हुयी है की जानकारी शायद आपको भी  हो ? नही न  ,  यदि जानना चाहते है  तो … क्या कहते है आप ? बाबू शब्द  हम लोगों ने अपने आसपास काफी  सुना है...... हम प्यार से  भी लोगों को बाबू कहते हैं, और अपने बच्चों को भी  भी बाबू कहकर पुकारते रहे है।   सरकारी कार्यालय में  क्लर्कों को भी बाबू  भैय्या ही तो कहते हैं ......या तो  कह लें कि  हम काम निकलने के लिए  उनकी  चापलूसी करते हैं...... और वे भी  बहुत खुश होते हैं....... अगर कोई उन्हें  प्यार से बाबू
कहे...... मतलब यह है की .....हम भारतीय... बाबू को  बहुत ही सम्मानजनक नाम के रूप में ही  लेते हैं..........लेकिन! क्या हमने कभी यह सोचा है की इस बाबू शब्द की उत्पत्ति कैसे और कहा  से  हुयी है? आखिर  जरा  सोचे तो भला   की ये शब्द  आया तो आया  कहा  से  ?
 क्या  आप कभी  मुंबई में नेहरू प्लेनेटोरियम के बगल में एक गोल बिल्डिंग है जिसमें इतिहास की समग्र जानकारी को पर्मानेंट प्रदर्शनी के
तौर पर रखा गया है, देखने को गये है। इस प्रदर्शनी को देखते हुए काफी अलग अलग किस्म की  रोचक जानकारीयां मिलती है। जिनके बारे में फिर कभी ?
वही  पर  एक जगह एक दरवाजा बना हुआ है  है जो कि किसी अंग्रेज के घर का है। घर में टंगे पोस्ट बॉक्स के बगल में एक ओर तख्ती लगी है जिस पर लिखा है - Dogs and Indians are not allowed  और इस तरह की तख्ती हिल स्टेशन  शिमला मसूरी  की मॉल रोड में भी लगी मिल जाती थी। या फिर  सिविल लाइन एरिया में भी जहा  की वे लोग रहते थे ।
इसी बात से पता चलता है कि अंग्रेज हमारे लिये कैसा व्यवहार रखते थे।
 अंग्रेज़ों ने हम पे जैसा की  सबको मालूम है की दो सौ साल तक भारत में  राज किया.... और हम हिन्दुस्तानियों को  इस दौरान बहुत ही हेय निगाह से देखा  करते थे।  उस वक्त अंग्रेज़ों के घरों और सरकारी दफ़्तर  में हिन्दुस्तानी लोग ही  नौकर थे..... उन लोगों को अँगरेज़ उनके रंग और डील डोल देख कर   बबून (baboon) पुकारते थे..... ( बबून (baboon) एक प्रकार का बन्दर प्रजाति का जानवर है.... जो कि अफ्रीका में पाया जाता है......जिसका मूँह कुत्ते जैसा और धड़ बन्दर जैसा होता है)
 तो भाई! ये अँगरेज़ लोग हम हिंदुस्तानिओं को बबून(baboon) कह कर हि  पुकारते थे..... जो कि अपभ्रंश होकर बाबू हो गया..... वैसे भी  हम हिन्दुस्तानियों को अंग्रेज़ों कि अंग्रेज़ी समझ में  ज्यादा तो  आती थी , नही  ....  तो जब अँगरेज़ हम हिन्दुस्तानियों को बबून (baboon) बुलाते थे..... तो हम हिन्दुस्तानियों कि उनके उच्चारण से  यह लगता  था..... कि यह लोग हमें प्यार से बाबू बुलातेहैं...... और ऐसा अँगरेज़ उस वक्त ज़्यादा करते थे जब उनके घर में कोई विलायत से मेहमान आता था..... यहाँ तक कि उस वक्त के I.C.S. Officers को भी अँगरेज़ बबून ही बुलाते थे..... .... और हम हिन्दुस्तानी भी ऐसे थे.... कि अपने घर जा कर उस वक्त लोगों को बड़ी खुशी खुशी बताते थे कि अँगरेज़ हमें प्यार से बाबू बुलाते हैं..... बेचारों को क्या मालूम था कि अँगरेज़ हमें  अपनी भाषा में गालियाँ दे रहें हैं..... बबून कह के...क्युकी इस शब्द के बारे में उन्होंने  ज्यादा नही सोचा। और  गूगल बाबा तो  थे नही जो की उन्हें बबून के फोटो दिखाते।    अंग्रेजो के चमचे  पढ़े लिखे भारतीयों ने भी   न ही  कभी  कोई आपत्ति ली। आज़ादी के बाद धीरे - धीरे यह शब्द हमारी आम ज़िन्दगी में प्रचलन में आ गया......
बाबूजी "बाबू" के सम्बन्ध में वैसे मेरी  इस  बात से पूरी तरह सहमत यदि नही हो तो  एक और पक्ष से भी आपको  वाकिफ करना चाहूँगा। जो की ज्यादा मान्य और लोगो को पसंद  है  वह यह की ब्रिटिश शासन के दौरान जब कोलकाता एकीकृत भारत की राजधानी थी, कोलकाता को लंदन के बाद ब्रिटिश साम्राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर माना जाता था। इसी दौरान बंगाल और खासकर कोलकाता में बाबू संस्कृति का विकास हुआ जो ब्रिटिश उदारवाद और बंगाली समाज के आंतरिक उथल पुथल का नतीजा  ही कहा  जा सकता है। उस समय  वहां  पर  बंगाली जमींदारी प्रथा हिंदू धर्म के सामाजिक, राजनैतिक, और नैतिक मूल्यों में उठापटक मचा हुआ था । और इन्हीं द्वंदों का नतीजा था कि अंग्रेजों के आधुनिक शैक्षणिक संस्थानों में पढे कुछ लोगों ने बंगाल के समाज में सुधारवादी बहस को जन्म दिया। मूल रूप से "बाबू" उन लोगों को कहा जाता था जो पश्चिमी ढंग की शिक्षा पाकर भारतीय मूल्यों को हिकारत की दृष्टि से देखते थे और खुद को ज्यादा से ज्याद पश्चिमी रंग ढंग में ढालने की कोशिश करते थे। लेकिन लाख कोशिशों के बावज़ूद भी  जब अंग्रेजों के बीच जब उनकी अस्वीकार्यता बनी रही।  तो बाद में  इसी वर्ग के कुछ लोगो ने नयी बहसों की शुरुआत की जो बंगाल के पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है। इसके तहत बंगाल में सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक सुधार के बहुत से अभिनव प्रयास हुये और बांग्ला साहित्य ने नयी ऊँचाइयों को छुआ जिसको बहुत तेजी से अन्य भारतीय समुदायों ने भी अपनाया। और इन्ही पढ़े लिखे लोगो की जमात बाबू कहलाने लगी.शायद
इसलिए बंगाली लोगों को आज भी बंगाली बाबू ही  कहा जाता है.
बाबू शब्द पिता के लिए भी प्रयोग होता है..... अब क्यूंकि हम भारतीय बाबू शब्द को सम्मान की नज़र से देखते हैं..... तो यह शब्द हम बड़ों बूढों को इज्ज़त देने के लिए भी इसका प्रयोग करने लगे.....फर्क बस इतना है की हमने बाबू के साथ जी भी जोड़ दिया वो बाबूजी हो गया..... अगर देखा जाए तो हम एक तरह से इस नाम का  बेईज्ज़ती ही कर रहे थे .....
हमें बाबूजी नहीं बोलना चाहिए.था .... मतलब हम बेईज्ज़ती भी सम्मान के साथ कर रहे हैं..... अब  एक और पक्ष  को ले तो ,शायद   यह बाबूजी भी नहीं था.... यदि था तो  ..  हमारी संस्कृति में यह बाउजी था..... जो आपक़ो हरयाणा की संस्कृति को  देखने में  मिल जायेगा..... बाउजी शब्द ही  आगे चल कर धीरे धीरे बाबूजी हो गया......... यह वही बाबू हैं जिन्होंने अंग्रेजों से वेस्टर्न शिक्षा ग्रहण की.... और अँगरेज़ उनको भी बाबू ही बोलते थे..... जिसको बंगाल के संस्कृति ने अपना लिया.... अब जब इंसान पढ़ लिखा लेता है.... तो दिमाग खुल जाता है ..... और बंगाली उस वक़्त अंग्रेजी शिक्षा के ज्यादा करीब थे..... लेकिन बंगालिओं ने अंग्रेजों से सीख के हम भारतियों को ज्ञान ही दिया..... इसलिए बंगाली लोग खुद को बाबू कहलाना पसंद करते थे...... क्यूंकि उनको भी लगता की ..... अँगरेज़ उन्हें प्यार से बाबू कह रहे हैं.....बहुत खूब.. भई हम तो प्यार से लोगों को बाबू कहकर ही बुलाते हैं
बाबू शब्द का विश्लेषण और उसमे छिपे हुए अर्थ को जानकर अज़ीब सा लगा. हम अक्सर इसे तो सम्मान देने के लिये प्रयोग करते थे. बाबू हम छोटे बच्चे के लिये भी प्रयोग करते थे. अब पता चला कि इसमे कितनी हिकारत भरी है.
 बस  भैय्या अब   इस सम्बन्ध में ज्यादा नही,  क्युकी किसी बाबू जी ने  कही पढ़ लिया न, तो लेने के देने न  पड़  जायें ।

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