गुरुवार, 25 अगस्त 2016

ग्राम ठकुराइन टोला खारून नदी मध्य उत्तराभिमुख शिव मन्दिर

भी १४ अगस्त को मैं और मेरा छोटा भाई अपने पैतृक ग्राम में स्वयं और भाई के खेतो के मेढ पर आम , कटहल, बिही ,करौंदा तथा मूंनगा के पेड़ लगाने की विचार से साथ में लेकर गए थे। ताकि सावन  का  अंतिम दिन  में १५ अगस्त की पूर्व संध्या पर 
कम से कम  हमारे लगाए पेड  आने वाली पीढ़ी को हमारी याद तो  दिलाएगा।   काफी पहले हम लोगो का सम्मिलात काफी बड़ा आम का बगीचा रहा है। जिसे लोगो ने पैसे कमाने के लोभ में पेड़ो की बिक्री कर खेती जमीन में तब्दील कर दिया ।  अब यह ग्राम भी दुर्ग से अभनपुर तक के मार्ग पर बीच में आने से यातायात काफी बढ़ गया है। और खेती कार्य करने में श्रमिको की दिक्कतों का सामना भी करना होता है। क्योंकि अब बहुत से लोग शहर की और काम करने पलायन करने लगे है।
खैर जब हम लोग शाम को रायपुर की और वापस होने लगे तो ग्राम खट्टी के समीप भाई ने बताया की थोड़े दूर में ही राजिम के कुलेश्वर महादेव के तर्ज़ पर शिव मंदिर है। सावन का अंतिम दिन है चलकर दर्शन लाभ कर लेते है। और हम लोग वहां तक पहुच गए।

यह मंदिर रायपुर से भाटागांव से दतरेंगा ,परसदा से आगे खट्टी ग्राम लगभग 18 -20 k.m. तक आते है तो गांव से खारुन नदी तक जाने का c.c. मार्ग है , नदी पर बने पल को पार करने खारून नदी और दक्षिण दिशा से ही बह कर आते हुए नाले की संगम मध्य पर बना हुआ हमे बायीं और मंदिर दिखता है ।


 और हम यदि दुर्ग या पाटन मार्ग से आते है तो 18 किमी दूर मोतीपुर ग्राम है औऱ यहाँ से पाटन जाने के लिए दो मार्ग हैं। एक मार्ग ग्राम फुंडा होकर जाता है और दूसरा मार्ग झींट होकर बायीं दिशा में जाता है। झींट होकर जाने वाले मार्ग पर 13 किमी की दूरी पर तुलसी ग्राम है और तुलसी ग्राम की बस्ती पार करने पर बाँयीं ओर कच्ची सड़क पर 3 किमी की दूरी पर खारून नदी के किनारे ग्राम ठकुराइन टोला है। ग्राम में निषादों का बहुतायत है। सन् 1942 में और 1947 में पुनः नदी में भयानक बाढ़ आने पर इसमें यहाँ के जान-माल को काफी क्षति पहुँची तब ग्रामवासियो ने निर्णय लिया था कि अब इस ग्राम को किसी ऊँचे टीले पर बसाया जायेगा, ।

और अब की बार निषादों ने खारून नदी से आधा कि मी दूर पीछे हट कर बस्ती बसाई। इसलिए यहाँ खारून नदी के तट पर कोई गाँव नहीं है, बस दोनों दिशा में मन्दिर ही मन्दिर नज़र आता है ।
जब हमने लोगो से बात की तो उन्होंने बताया की सन् 1941 में किसी निषाद दल के मुखिया (लोगो ने राजा कहा ) के राजिम प्रवास के दौरान में महानदी, सोंढूर और पैरी के संगम में कुलेश्वर महादेव के मंदिर को देखकर मन में यह बात आई कि ठकुराइन टोला में भी खारून नदी की और नाले के मध्य धारा में एक ऐसा हि भव्य मन्दिर का निर्माण किया जाए । उन्होंने निषाद समाज के प्रमुख लोगों से परस्पर मंत्रणा की और निषादो ने आपसी सहयोग से मन्दिर बनवाने की योजना बनाई गई।


नदी के बीच के पत्थरों को ही कुशल शिल्पकारों द्वारा वर्गाकार काटने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ और लगभग आधी शताब्दी तक काम चलने के बाद सन् 1980 तक जगती का काम पूरा हुआ। जगती के ऊपर शिव मन्दिर उत्तराभिमुख निर्मित है।

 गर्भगृह में शिवलिंग की पीठिका भी उत्तराभिमुख है, पर जल-प्राणालिका दक्षिण में है। मंदिर के निर्माण का कार्य सन् 1984 में पूर्ण हुआ था। धमतरी के निकट के किसी ग्राम के शिल्पकार हरि राम द्वारा निर्मित शिवलिंग की भव्य प्रतिमा इस मन्दिर में स्थापित है।
अभी जब हम लोग गए थे तो लेकिन मंदिर तक पहुचने का मार्ग छोटा है किन्तु पत्थर पर कई जमा होने और घाट के बाद नुकीले पत्थर होने से फिसलन योग्य है। तथा सीढ़ी के बीच के अंतर की उचाई बुजुर्गो को तकलीफ दे सकती है। मंदिर में दत्तात्रेय और बाल्मीकि तुलसी तथा अब देवी की भी की मूर्ती स्थापित है। तथा पास ही नदी का पानी रोके जाने से और गिरने से काफी अच्छा दृश्य लगता है। किन्तु ग्राम वासियो को दोनों किनारे पर सघन वृक्छारोपण करना चाहिए। तथा वह तक पहुचने के मार्ग को निर्माण कराये जाने की आवश्यकता है।












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