शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

तेंदुआ  का जोड़ा मारे तरफ बढ़ने लगा.....  और सीट के नीचे पेंट गीली हो गयी...........?

शिकार कथा )

देवेन्द्रकुमार शर्मा 113,सुंदरनगर रायपुर छत्तीसगढ़


बात तब कि है ,जब  मै अविभाजित मध्य प्रदेश के राजनांदगांव जिले के कवर्धा (वर्तमान में जिला मुख्यालय) तहसील के ब्लॉक बोडला में विकास खंड अधिकारी  के पद में पदस्थ था। तहसील कवर्धा के एस. डी.ओ के पद में पदस्थ श्री शेखावत जी का ट्रांसफर होउनके स्थान में श्री  ए के सिंह पदस्थ हुए थे। 
वे कान से कम  सुनते थे ,तो लोगो ने उनका नाम भैरावत कर दिया। उसी समय मेरा भी स्थानांतरण  मुंगेली को हो गया था।  किन्तु कलेक्टर साहब ने रिलीव नही किया था, वे मेरे काम से तो खुश थे  । साथ ही उनके जंगल भ्रमण में भी साथ ही रहता था
 और हर बार हम लोग टाइगर ,लेपर्ड जैसे दुर्लभ प्राणी सुपखार (चिल्फी से १८  कि.मी ) से लेकर कान्हा किसली के बीच देख लेते थे।श्री सिंह को ये बात ज्ञात नही था। मै जब उनसे मुलाकात के लिए गया । 
 उन्होंने मुझे कहा,आप अभी तक रिलीव नही हुए है। मैंने कहा कलेक्टर से बात कर आप कर दीजिये ,और वापस बोडला को आ गया।शाम 5 बजे होंगे की एस.डी.ओ. साहेब बोडला आये ,मुझे मेरे क्वार्टर से बुलवाया। में जैसे ही आया ,उन्होंने कहा शर्मा आप नाराज़ हो ,क्या मुझसे ,मैंने कहा नही सर क्यों आप ऐसे क्यों बोल रहे है। 
उन्होंने कहा मैंने तुम्हारे रिलीव की बात कलेक्टर से की ,उन्होंने कहा है ,जब तक मै न बोलू ,तुम शर्मा को भारमुक्त नही करना।  और पता लगा है यार आप उन्हें शेर आदि दिखा देते हो। (मुझे लगा जैसे शेर मेरे पालतू है ,और उनके कान पकड़ कर खड़ा कर देता हु ) मै कुच्छ नही बोला। 
तब उन्होंने कहा  मेरी फैमिली भी आने वाली है ,उनको भी दिखा देते है। आप साथ में चलेंगे न। मैंने भी  हामी  भर दी।
 अगले 2nd सैटरडे हम लोग शाम ०३ बजे बोडला से जीप में चिल्फी पहुंचे। मेरी बंद गाड़ी थी ,उनके गाड़ी के साइड के हुड खुलवा दिए। और गाड़ी में  स्पॉट व् अन्य लाइट भी फ़ीट करा लिया  ,ताकि अँधेरे में दूर तक नज़र डाली जा सके।







वैसे जंगल भ्रमण का असली समय गोधूलि बेलासूर्यास्त के वक्त को मानते है. क्यूंकि उस समय जंगली जानवर पानी पीने जलस्रोत के नज़दीक आते है। उनके आने का भी एक क्रम होता है ,और घास खाकर जीने वाले ,फिर मांसाहारी हिंसक जानवर आते जाते है  
चिल्फी से सूपखार व् बिठली ग्राम के बीच कई नाले ,छोटे तालाब  आदि है और ६ से ७ के मध्य हम लोग रेस्ट हाउस से चल पड़े। 


 चिल्फी नाके (वन)  के आगे से जंगल मंडला जिला और फिर बालाघाट का एरिया प्रारम्भ होता है। शाम समाप्त होकर कुछ कुछ अँधेरा सा छाने लगा था। (सूपखार एरिया  कान्हा किसली के बफर जोन है काफी  घांस ,पानी का श्रोत झाड़ी फिर लम्बे साल व् अन्य प्रजाति के पौधे व् फिर विश्रामगृह के आसपास पाइन प्लांटेशन ,तथा कॉफी के पौधे भी लगे है । ,
 काफी पुराना सर्किट हाउस है जोकि छप्पर आदि घास के है व् अंग्रेज़ो के फनी चित्र बना कर कार्टून के रूप में भी लगे है )

खैर हम लोग छोटे मोटे जंगली जानवर देखते आगे बढ़ते जा रहे थे। आगे एक छोटी सी घाटी और फिर एक गाँव जहा सिर्फ वन विभाग के लोग ही रहते है। 
घाटी के पास अँधेरा ज्यादा हो गया ,तो हमलोगो ने लाइट आदि जला ली। अब खुले जीप में मै  श्री सिंह। तहसीलदार श्री महिलांगे व मै ड्राइविंग सीट में बैठ कर गाड़ी चलाने लगा ,ड्राइवर श्री खान के हाथो में स्पॉट लाइट दे दिया ,जिसे वे गाड़ी के पिच्छे खड़े होकर जंगल में जानवर दीखते ही फोकस करने लगे।

 पीछे बंद जीप में श्री सिंह का परिवार बैठा था।  जैसे ही घाटी से नीचे उतरे मुझे दो लालटेन जैसे चमकते नज़र आये। मैंने गाड़ी स्लो कर ,ड्राइवर को उसपर फोकस करने कह! .,,,,,,,,आगे गाँव के कुत्तो की भोकने की आवाज़ दूर से आ रही थी। सामने चमकदार चमड़ी वाला युवा तेंदुआ बैठा था. यह चीते से कुछ छोटा व् इसकी चमड़ी के ऊपर के काले धब्बे भरे हुए न दिख कुछ धब्बे के बीच खली स्पॉट  जैसे  होता है। 
किन्तु यह भी डेंजरस ही होता है ,ये गाव से बकरी ,कुत्ते आदि को अपना शिकार बनता है। खैर वो बीच सड़क में आराम से बैठा हुआ था ,व् लाइट पड़ते ही ,हम लोगो की और देखने लगा। मैंने गाड़ी को फर्स्ट गियर में डाल स्लो चलते हुए करीब ४०५०  फ़ीट के अंतराल में पहुंच गया। व् गाड़ी में ब्रेक लगा लाइट में उसे देखने लगे उसकी मुछो के बाल दूर से ही लाइट में चमक रहा था।
 और वो हिकारत की नज़र से हमे देख रहा था। किन्तु बैठा ही रहा। तभी अचानक एक और तेंदुआ (शायद ये नर मादा थे ) अचानक अँधेरे जंगल से बाहर आ कर उसके पास खड़ा हो गया ,और गुर्राने लगे। अब हमारी हालत अंदर से पतली होने लगी की कहि ये अटैक न कर दे।
 मैंने पीछे गाड़ी के ड्राइवर को गाड़ी पीछे करने का इशारा किया ,उसने गाड़ी रिवर्स करने की चेस्टा में गाड़ी को बंद कर लिया। अब मेरी गाड़ी भी पीछे नही जा सकती थी। 
इस खटपट से अचानक बैठा हुआ तेंदुआ (लेपर्ड) उठ के अंगड़ाई लेकर पूछ को हिलाते हुआ हमारे तरफ बढ़ने लगा। तभी मुझे लगा की मेरे पेंट के नीचे गिला हो रहा है। कुछ देर में पीछे वाले तेंदुआ ने सामने वाले को देख अलग स्वर में गुर्रा कर उसके अपने सर से हलकी सी टक्कर दी ,(मानों उसने कहा होगा जाने भी दो यारो ,इनके पीछे क्यों अपनी शाम ख़राब करते हो।
 और वे जंगल में हमे देखते देखते घुस गए। तब जान में जान आई। तहसीलदार ने तब श्री सिंह को कहा सर ये बबलू ने पेशाब कर दिया है। बबलू सिंह साहेब क ४,५ साल का नाती था जो हमारे ही बीच में बैठा था और डर कर पेशाब कर बैठा थाजिसके कारण ही मेरी भी पेंट गीली हो गई थी।



4 टिप्‍पणियां: