सिरकटी हुई गजसवार के टांगो में फंसा पतिदेव (अमरकण्टक मेरी यादो में से )
वर्ष ८६ की बात है जब मैं मुंगेली से एक दिवसीय यात्रा पर अमरकंटक गया था।
अमरकंटक में नर्मदा मंदिर समूह और उद्गम के कुंड के ही पास ही पुराना पाषाण निर्मित सिर कटी हुई गजसवार की मूर्ती , और अश्व सवार , तथा जब तक सूरज चाँद रहेगा नाम हमारा अमर रहेगा का और मृत व्यक्ति के जाति सूचक और व्यसाय का बोध कराने वाला तथा उसके साथ कितनी पत्नी सती हुई आदि के बोध कराने वाला, पत्थर में उकेरित सती प्रथा सूचक अनेको मुर्तिया स्थापित है।
उस स्थापित हाथी की ४ पैर वाली सिरकटी सवार प्रतिमा के साथ आसपास के पण्डे -पुजारिओं ने लोगो को भ्रमित कर उन्हें पुण्यात्मा या पापी घोषित कर दान दक्षिणा ऐंठने का अच्छा माध्यम खोज लिया है।
खैर जब हम लोग वहां पर पहुंचे तो क्या देखते है की बिलासपुर रेलवे कॉलोनी से एक दिवसीय पिकनिक मानाने आये बंगाली परिवार में से एक के पुत्री और पत्नी हाथी के पैरो के बीच से निकल कर पंडित को पैसे देकर धर्मात्मा घोषित हो चुके है। और अब वे दोनों तथा पंडित जी उनके मोटे से शरीर के पापा जी व पतिदेव को हाथी प्रतिमा के पैरो के बीच से निकल कर पुण्यात्मा किस्मतवाला कहलाने के लिए उकसा रहे थे।
पंडित ज्यादा उकसा रहा था , ताकि उनकी दान दक्षिणा इसे पुण्यात्मा घोषित करने से प्राप्त हो सके।
उस प्रतिमा के साथ किंवदन्ति जुड़ी हुई है कि इसके पैरो में मध्य से सिर्फ़ कोई धर्मात्मा ही निकल सकता है, चाहे वह कितना ही मोटा व्यक्ति क्यों न हो। अगर कोई पापी रहे तो पतला भी इसमें फ़ंस सकता है। बस क्या था वो मोटा आदमी भी हिम्मत कर उघरा बदन हो हाथी के चारो पैरो के नीचे मध्य से घुस गया. हम लोग भी तमाशबीन हो देखते रहे की वो बाहर निकले और हम घुस पुण्यात्मा घोषित हो सके । लेकिन ये क्या वो तो बाहर ही नही निकल पा रहा है । और हाथी के चारो पैर के बीच में फंस गये थे । थक हार परेशान होकर उसने हाथपैर डाल दिए । अब उनकी पत्नि जी और पुत्री रोने लगी । क्युकी वे ब्लड प्रेशर के मरीज भी है।
उकसा रहे लोग धीरे धीरे गायब होने लगे । बिचारे बाकी बचे तमासबीनो क मुफ्त सलाह लेते हुए निकलने के प्रयास में पसीने पसीने हो हलाकान थे। फिर लोगो की सलाह पर साबुन के पाउडर माँगा कर घोळ कर उनके ऊपर उड़ेले जाने लगे। उनकी पुत्री और पत्नी ने उनका हाथ पकड़ कर खींचना भी प्रारम्भ कर दिया। .किन्तु नहीं निकल पाए वे । तभी वहा के कुछ पुराने दर्शनार्थी भी आ गये ,जिन्होंने उन्हें ,और उनकी पत्नी को सांत्वना देकर और फंसे को , हिम्मत बंधा कर गाइड किया। और लीजिए अब वो ले- देकर जैसे तैसे बाहर निकल आकर धर्मात्मा घोषित कर दिए गए। किन्तु इस दौरान उनके हाथ पैर पाकर कर खिचने से पीठ छिल भी चूका था। वास्तविकता में वहाँ से निकलने की टेकनिक है। वह व्यक्ती मोटा होने से उसका पेट हाथी के पैरोँ के बीच फस गया था। कुछ लोग भय से ही हाथी के प्रतिमा की पैरों से निकलने का प्रयास हि नहीं करते। यद्यपि मै दुबला - पतला हु। ,किन्तु पता नहीं क्यों मुझे इस घटना के बाद निकलने की इच्छा नहीं हुयी। वैसे भी इस तरह की बात में मुझे विश्वास नही है. ,और इसमें ऊपर वाली घटना भी एक कारण हो सकता है। इसी लिए दवारिका धाम में भी एक खम्भे और दिवार के बीच से गुजर कर अपने आप को पुण्यात्मा घोषित नहीं कराया।
उस स्थापित हाथी की ४ पैर वाली सिरकटी सवार प्रतिमा के साथ आसपास के पण्डे -पुजारिओं ने लोगो को भ्रमित कर उन्हें पुण्यात्मा या पापी घोषित कर दान दक्षिणा ऐंठने का अच्छा माध्यम खोज लिया है।
खैर जब हम लोग वहां पर पहुंचे तो क्या देखते है की बिलासपुर रेलवे कॉलोनी से एक दिवसीय पिकनिक मानाने आये बंगाली परिवार में से एक के पुत्री और पत्नी हाथी के पैरो के बीच से निकल कर पंडित को पैसे देकर धर्मात्मा घोषित हो चुके है। और अब वे दोनों तथा पंडित जी उनके मोटे से शरीर के पापा जी व पतिदेव को हाथी प्रतिमा के पैरो के बीच से निकल कर पुण्यात्मा किस्मतवाला कहलाने के लिए उकसा रहे थे।
पंडित ज्यादा उकसा रहा था , ताकि उनकी दान दक्षिणा इसे पुण्यात्मा घोषित करने से प्राप्त हो सके।
उस प्रतिमा के साथ किंवदन्ति जुड़ी हुई है कि इसके पैरो में मध्य से सिर्फ़ कोई धर्मात्मा ही निकल सकता है, चाहे वह कितना ही मोटा व्यक्ति क्यों न हो। अगर कोई पापी रहे तो पतला भी इसमें फ़ंस सकता है। बस क्या था वो मोटा आदमी भी हिम्मत कर उघरा बदन हो हाथी के चारो पैरो के नीचे मध्य से घुस गया. हम लोग भी तमाशबीन हो देखते रहे की वो बाहर निकले और हम घुस पुण्यात्मा घोषित हो सके । लेकिन ये क्या वो तो बाहर ही नही निकल पा रहा है । और हाथी के चारो पैर के बीच में फंस गये थे । थक हार परेशान होकर उसने हाथपैर डाल दिए । अब उनकी पत्नि जी और पुत्री रोने लगी । क्युकी वे ब्लड प्रेशर के मरीज भी है।
उकसा रहे लोग धीरे धीरे गायब होने लगे । बिचारे बाकी बचे तमासबीनो क मुफ्त सलाह लेते हुए निकलने के प्रयास में पसीने पसीने हो हलाकान थे। फिर लोगो की सलाह पर साबुन के पाउडर माँगा कर घोळ कर उनके ऊपर उड़ेले जाने लगे। उनकी पुत्री और पत्नी ने उनका हाथ पकड़ कर खींचना भी प्रारम्भ कर दिया। .किन्तु नहीं निकल पाए वे । तभी वहा के कुछ पुराने दर्शनार्थी भी आ गये ,जिन्होंने उन्हें ,और उनकी पत्नी को सांत्वना देकर और फंसे को , हिम्मत बंधा कर गाइड किया। और लीजिए अब वो ले- देकर जैसे तैसे बाहर निकल आकर धर्मात्मा घोषित कर दिए गए। किन्तु इस दौरान उनके हाथ पैर पाकर कर खिचने से पीठ छिल भी चूका था। वास्तविकता में वहाँ से निकलने की टेकनिक है। वह व्यक्ती मोटा होने से उसका पेट हाथी के पैरोँ के बीच फस गया था। कुछ लोग भय से ही हाथी के प्रतिमा की पैरों से निकलने का प्रयास हि नहीं करते। यद्यपि मै दुबला - पतला हु। ,किन्तु पता नहीं क्यों मुझे इस घटना के बाद निकलने की इच्छा नहीं हुयी। वैसे भी इस तरह की बात में मुझे विश्वास नही है. ,और इसमें ऊपर वाली घटना भी एक कारण हो सकता है। इसी लिए दवारिका धाम में भी एक खम्भे और दिवार के बीच से गुजर कर अपने आप को पुण्यात्मा घोषित नहीं कराया।
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