गुरुवार, 25 अगस्त 2016

 कैलाश गुफा जशपुर जिला की यात्रा 

    Devendra Kumar Sharma
113 ,sundarnagar ,Raipur ,chattisgadh
मै वर्ष २०१३ में गर्मी के मौसम  में रायपुर से  शासकीय कार्यवश अम्बिकापुर नगर गया था।  मुझे घूमने का शौक है ,मैंने वहा  पर  लोगो से आसपास के घूमने की जगह की जानकारी ली। लोगो ने मैनपाट ,सामरीपाट  कैलाशगुफा आदि जगह की जानकारी दी।श्री नेताम जी मेरे मित्र है , जो की वर्तमान में पंचायत ट्रेनिंग सेंटर में फेकल्टी मेंबर के रूप में कार्यरत है ने मुझे अपने साथ अगले दिन  कैलाश गुफा देखने  चलने को  आग्रह किया। जगह की खासियत पूछने पर इस जगह के बारे में उन्होंने बताया कि   अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है,



 जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी जिनका उस छेत्र में काफी सम्मान था,  नें पहाडी चटटानो को तराश कर निर्मित करवाया है। यहाँ  महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिरबाघ माडाबधद्र्त बीरयज्ञ मंड्पजल प्रपातगुरूकुल संस्कृत विद्यालयगहिरा गुरू आश्रम है।
 इस जगह का विवरण जानने  के लिए लगा सुचना फलक  :-

तब मुझे भी ख्याल आया की इस जगह की तारीफ जब मै रायगढ़ में  पदस्थ था तो भी अनेको   मित्रो ने की  , किन्तु मै यहां  आ  नही पाया था।  दूसरे दिन  जीप से श्री नेताम और उनके  एक और मित्र के साथ चल पड़े ,रास्ते काफी सुहावने थे। कहि कहि तेज़ हवा के झोको से ख्याल आता की ये जगह पवन चक्की या इनसे ऊर्जा पैदा कर उसका उपयोग किया जा सकता है। कुछ जगह छत्तीसगढ़ शासन की पहल भी इस दिशा में दिखाई दी।  


 वैसे    जशपुर  जिला के  ब्लॉक मुख्यालय  बागीचा   से यह स्थान   लगभग 120 किलोमीटर दूर है। यह स्थान जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में अलग पहचान देने वाला प्रमुख दर्षनीय स्थल है। कैलाश गुफा को  पहाड़ में चट्टानों को  मात्र 27 दिनों में खुदाई और  काटने से बनाया गया है। समीपस्थ ग्राम सामरबार  में  संस्कृत महाविद्यालय  है। यह हमारे देश में   दूसरा संस्कृत महाविद्यालय   है।  जो की श्री रामेश्वर गहिरा गुरू जी की प्रेरणा से  निर्मित है।  





बगीचा बतौली मुख्य सड़क के बाद कैलाश गुफा पहुंचने वाली 14 कि.मी. की उबड़ खाबड़ सड़क पर जगह जगह नुकीले पत्थर और गड्ढो के चलते हमे  यहॉं  पहुंचने में दिक्कते तो हो रही थी ,पता नही इस सड़क को क्यों नही बनाया गया है।  बगीचा बतौली की पक्की सड़क छोड़ने के बाद ग्राम मैनी से गुफा पहुंचने के लिए कच्ची सड़क पर पत्थरों की भरमार और बड़े बड़े गड्ढों के चलते कैलाश गुफा पहुंचने से पहले ही हमारा  मन खिन्न सा  हो गया ।जशपुर जिले को पर्यटन के क्षेत्र में अलग पहचान देने वाला यह  स्थल कैलाश गुफा तक पहुंचने वाली सड़क की बदहाली  के चलते ही शायद गर्मी के दिनों में भी यह स्थान सुनसान ही था।  महज 14 कि.मी.की दूरी को दो घंटो में तय करने से बाहर का सैलानी इधर दूसरी बार आने का नाम नहीं लेते  है। बीच रास्ते में वाहन खराब होने के बाद दूर दूर तक गाव नही होने से  मदद मिलने की उम्मीद भी  नहीं रहती  है। 

अंबिकापुर  से यहॉं  पहुंचे मेरे साथ के लोगो  ने बताया कि इस धार्मिक और रमणीय स्थल पर वे एक दशक पहले आए थे।उस समय यहॉं  की कच्ची सड़क की हालत आज की तुलना में  काफी अच्छी थी। किन्तु अभी तो जीप को भी सम्हाल कर चलाना पड़  रहा था। मुरम जैसी लाल मिटटी वाली भूमि आलू ,टमाटर की खेती के लिए प्रसिद्ध  है। 
\किन्तु  कैलाश गुफा के समीप पहुचने पर चारो ओर ऊंची पहाड़ियां तथा दूर दूर तक फैली हरियाली के साथ  झर झर  झरते  झरनों का रमणीय दृष्य को देखते ही हमारी  सारी  थकान उतर गयी  यहाँ पर सुन्दर   झरने लगभग ४० फ़ीट ऊपर से गिरते और उची उची पहाड़ो के बीच  घने दरख्तो के बीच से बहते हुए  और केले ,आम  के  काफी तादाद में लगे  वृक्ष यहाँ की  सुंदरता और आकर्षण बढ़ा रहे हैं। कैलाश गुफा में  पहाड़ों  को काटकर बनाये गए गुफा वाले कमरो जिसके बाहर की दिवार में टपकते पानी की बुँदे और इसमें  स्थापित प्राचीन शिव मंदिर का आकर्षण के चलते भी यह पर्यटन स्थल अब  दूर दूर तक अपनी पहचान बना चुका है। बताते है की यहां  पर अनेको दुर्लभ जड़ी बूटी पाई जाती है।  यहॉं  पर सैलानियों की सुविधा पर  काफी ध्यान  देने की आवश्यकता है। जगह के सुनसान होने के कारण कैलाश गुफा आश्रम के पुजारी का कहना था कि इस स्थल पर आवागमन के साधन का अभाव तथा सड़कों की दुर्दषा के चलते सैलानियों की भीड़ पर विपरीत असर पड़ा है। कैलाशगुफा के आस पास रेस्ट हाउस बना कर इस स्थल को विकसित किया जा सकता है। शासन को इस दिशा  में सार्थक प्रयास करने  चाहिए। 



 कैलाश गुफा का प्रमुख   प्राचीन शिव मंदिर के आसपास काले बन्दरों का उत्पात भी बढ़ गया है। इस रमणीय स्थल पर प्रमुख आकर्षण का केन्द्र के रूप में काफी उंचाई से गिरने वाला झरना को माना जाता था। इन दिनों लगभग 40 फीट की ऊँचाई से गिरने वाली पानी की मोटी धारा भी अब लुप्त होकर यहॉं  पानी का पतला झरना ही रह गया है। किन्तु यहॉं पर पत्थरों में काई और कचरे की भरमार रहने से कोई भी सैलानी यहॉं  नहाने का आनंद नहीं ले पाता है। मेरे ड्राइवर ने भी  ट्यूबवैल में नहाना पसंद किया। ,वहां के स्थानीय लोगो से  हमने केले और आम खरीद कर खाए ,वहाँ के आम काफी मीठे है  और किसी भी प्रकार के अन्य नास्ते सामग्री  वहां  उपलब्ध नही थे।  हम लोगो ने  कैलाश गुफा में व्यस्थाके आभाव के  चलते   जल्द से जल्द अँधेरा होने से पहले  वापस लौटने में ही अपनी भलाई समझे । क्युकी यहाँ  पर जंगली जानवर भी आते रहते है। 
       Devendra Kumar Sharma
113 ,sundarnagar ,Raipur ,chattisgadh

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें