चलन से बाहर होते जा रहे रहचुली झूले
किसी भी समारोह, , उत्सव, , मेला बाज़ार या मँडई में दिखने वाली रौनक का सीधा-सीधा ताल्लुक उस क्षेत्र की फसल की स्थिति पर तथा आर्थिक स्थिति से होता है।
फसल ठीक रही तो चहलपहल और उल्लास साफ साफ देखने में आता है। मँडई में रौनक और लोग अत्यधिक प्रसन्नचित्त नज़र आते हैं । और लड़के-लड़कियाँ बन-ठन कर घूमते हैं!
फसल ठीक रही तो चहलपहल और उल्लास साफ साफ देखने में आता है। मँडई में रौनक और लोग अत्यधिक प्रसन्नचित्त नज़र आते हैं । और लड़के-लड़कियाँ बन-ठन कर घूमते हैं!
साल भर की प्रतीक्षा के बाद तो आती है उत्सव, मेला मँडई। और आती ही इसीलिये है कि लोग आपस में मेल-मुलाक़ात कर सकें ।
आनन्द और उमंग के दो क्षण आपस में मिल कर गुज़ार सकें । कल का किसे पता है ।
रहचुली झूलों की जगह आधुनिक विशाल झूलों ने ले ली है। कभी मेले के शान रहे रहचुली झूले वर्तमान में चलन से बाहर होते जा रहे है ।
आनन्द और उमंग के दो क्षण आपस में मिल कर गुज़ार सकें । कल का किसे पता है ।
और फसल की हालत कमज़ोर रही तो सारा उल्लास फीका पड़ जाता है ।
आधुनिकता के चलते अब बड़े कस्बों में लगने वाले मेलों में रहचुली झूलों की पूछपरख कम हो गई है। रहचुली झूलों की जगह आधुनिक विशाल झूलों ने ले ली है।
कभी मेले के शान रहे रहचुली झूले वर्तमान में चलन से बाहर होते जा रहे है। , ये झूले खत्म हो रहे है।
पर इनकी मधुर चररर,, चु की आवाज और रंगीनी अभी दूरस्थ ग्रामीण एरिया में कायम हैं।
झूले में लड़कियों की झुण्ड ,लड़को के उत्साह का केंद्र होता है।
ऊपर से नीचे रुमाल का गिराना ,और नीचे लड़कियों द्वारा लपक लेना।फिर ऊपर से लड़कियों के द्वारा रुमाल का गिराना और लड़को द्वारा लपक लेना ।
इनके मस्ती और उमंग में जोश भर देता है जो की इसी झूला में ही संभव है।
आधुनिकता के चलते अब बड़े कस्बों में लगने वाले मेलों में रहचुली झूलों की पूछपरख कम हो गई है। कभी मेले के शान रहे रहचुली झूले वर्तमान में चलन से बाहर होते जा रहे है। , ये झूले खत्म हो रहे है।
पर इनकी मधुर चररर,, चु की आवाज और रंगीनी अभी दूरस्थ ग्रामीण एरिया में कायम हैं।
झूले में लड़कियों की झुण्ड ,लड़को के उत्साह का केंद्र होता है।
ऊपर से नीचे रुमाल का गिराना ,और नीचे लड़कियों द्वारा लपक लेना।फिर ऊपर से लड़कियों के द्वारा रुमाल का गिराना और लड़को द्वारा लपक लेना ।
इनके मस्ती और उमंग में जोश भर देता है जो की इसी झूला में ही संभव है।
रहचुली झूलों की जगह आधुनिक विशाल झूलों ने ले ली है। कभी मेले के शान रहे रहचुली झूले वर्तमान में चलन से बाहर होते जा रहे है ।
कम पूछ परख के चलते इससे व्यवसाय करने वालों को अब रोजी रोटी के लिए दूसरे व्यवसाय की ओर रूख करना पड़ रहा है।
एक तो इन झूलो को लाने ले जाने में परिवहन व्यय ,मेला शुल्क ,झूला झुलाने हेतु श्रमिक फिर स्वयं की व्यस्था अब इनको महंगा लगने लगा है।
पिछले 30 से 35 वर्षों से वे झूला का व्यवसाय कर रहे है, इनका कहना है की अब लागत नही निकलता तथा साथ ही गांव के लोग भी शहरीकरण की वजह से पहले जैसे इन झूलो में नही बैठते है।
इसलिये इस झूले से व्यवसाय करने वाले लोग अब शहरों में इन झूलों को नहीं ले जाने हेतु मन बना लेते है। मीना बाजार में आए विभिन्न प्रकार के आकर्षक झूलों ने रहझूला को चलन से बाहर कर दिया। गांव के मेलों में इसकी पूछ परख होती है।
अनेको जगह में ग्राहकों के अभाव में झूले बंद पड़े है।शहरों में अब रहचुली झूलों का चलन खत्म हो रहा है।क्योंकि गांव से शहर तक आने व यहां पर धंधा नहीं होने से उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
एक तो इन झूलो को लाने ले जाने में परिवहन व्यय ,मेला शुल्क ,झूला झुलाने हेतु श्रमिक फिर स्वयं की व्यस्था अब इनको महंगा लगने लगा है।
पिछले 30 से 35 वर्षों से वे झूला का व्यवसाय कर रहे है, इनका कहना है की अब लागत नही निकलता तथा साथ ही गांव के लोग भी शहरीकरण की वजह से पहले जैसे इन झूलो में नही बैठते है।
इसलिये इस झूले से व्यवसाय करने वाले लोग अब शहरों में इन झूलों को नहीं ले जाने हेतु मन बना लेते है। मीना बाजार में आए विभिन्न प्रकार के आकर्षक झूलों ने रहझूला को चलन से बाहर कर दिया। गांव के मेलों में इसकी पूछ परख होती है।
अनेको जगह में ग्राहकों के अभाव में झूले बंद पड़े है।शहरों में अब रहचुली झूलों का चलन खत्म हो रहा है।क्योंकि गांव से शहर तक आने व यहां पर धंधा नहीं होने से उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें