बुधवार, 7 जून 2017

रामायण में छुपे दस रहस्य , जिनसे अपरिचित हैं आप
रामायण की लगभग सभी कथाओं से हम परिचित ही हैं , लेकिन इस महाकाव्य में रहस्य बनकर छुपी हैं कुछ ऐसी छोटी छोटी कथाएं जिनसे हम लोग परिचित नहीं हैं , तो आइये जानते हैं वे कौन सी दस बातें हैं जो रामायण के विषय में हम नहीं जानते :
1. रामायण राम के जन्म से कई साल पहले लिखी जा चुकी थी | रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं।
2. वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे। यह सबसे उत्कृष्ट ग्रह दशा होती है , इस घड़ी में जन्म बालक अलौकिक होता है
3. जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।
4. रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था। (एक योजन लगभग 13-16 किमी होता है)
5. सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह का वध रावण ने कर दिया था। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
6. कहते हैं जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी, और वे एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा रहे थे, तो उनकी नजर शनी देव पर पड़ गयी ! वे एक कोठरी में बंधे पड़े थे ! हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त किया ! मुक्त होने पर उन्होंने हनुमान जी के बल बुद्धी की भी परिक्षा ली और जब उन्हें यकीन हो गया कि वव सचमुच में भगवान रामचंद्र जी के दूत हनुमान जी हैं तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि "इस पृश्वी पर जो भी आपका भक्त होगा उसे मैं अपनी कुदृष्टि से दूर ही रखूंगा, उसे कभी कोइ कष्ट नहीं दूंगा " ! इस तरह शनिवार को भी मदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ होता है तथा आरती गाई जाती है !
7. जब खर दूषण मारे गए, तो एक दिन भगवान राम चन्द्र जी ने सीता जी से कहा, "प्रिये अब मैं अपनी लीला शुरू करने जा रहा हूँ ! खर दूषण मारे गए, सूर्पनखां जब यह समाचार लेकर लंका जाएगी तो रावण आमने सामने की लड़ाई तो नहीं करेगा बल्की कोई न कोई चाल खेलेगा और मुझे अब दुष्टों को मारने के लिए लीला करनी है ! जब तक मैं पूरे राक्षसों को इस धरती से नहीं मिटा देता तब तक तुम अग्नि की सुरक्षा में रहो" ! भगवान् रामचंद्र जी ने उसी समय अग्नि प्रज्वलित की और सीता जी भगवान जी की आज्ञा लेकर अग्नि में प्रवेश कर गयी ! सीता माता जी के स्थान पर ब्रह्मा जी ने सीता जी के प्रतिबिम्ब को ही सीता जी बनाकर उनके स्थान पर बिठा दिया !
8. अग्नि परीक्षा का सच :- रावण जिन सीतामाता का हरण कर ले गया था वे सीता माता का प्रतिबिम्ब थीं , और लौटने पर श्री राम ने यह पुष्टि करने के लिए कि कहीं रावण द्वारा उस प्रतिबिम्ब को बदल तो नहीं दिया गया , सीतामाता से अग्नि में प्रवेश करने को कहा जो कि अग्नि के घेरे में पहले से सुरक्षित ध्यान मुद्रा में थीं , अपने प्रतिबिम्ब का संयोग पाकर वे ध्यान से बाहर आईं और राम से मिलीं |
9. आधुनिक काल वाले वानर नहीं थे हनुमान जी :- कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। हनुमानजी उसी जाति के ब्राह्मण थे।शोधकर्ताओं के अनुसार भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से लगभग 15 हजार वर्ष पूर्व विलुप्त होने लगी थी और रामायण काल के बाद लगभग विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम `कपि` था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, लेकिन कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है।
10. विश्व में रामायण का वाचन करने वाले पहले वाचक कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश थे | जिन्होंने रामकथा स्वयं अपने पिता श्री राम के आगे गायी थी | पहली रामकथा पूरी करने के बाद लव कुश ने कहा भी था हे पितु भाग्य हमारे जागे, राम कथा कहि राम के आगे

शनिवार, 3 जून 2017

मनीराम एक अकेला व्यक्ति जिसने पर्यावरण की रक्षा में सागोन पेड़ का रोपण करने की सजा पाकर आज करोडो रूपये की संपत्ति आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़ गया ........

मनीराम प्लांटेशनबार नवापारा से लगे देवपुर के जंगल


 (बार नवापारा से लगे देवपुर के जंगल)

अभी हॉल में मैंने श्री अनुराग मिश्र जी का इतिहास में गुम हो रहा110 बरस का सागौन जंगल मनीराम प्लांटेशन के सन्दर्भ में लेख देखा .और चुकी अनेको बार इस जगह को मैंने भी स्वयं देखा है .....

राज्य सरकार और वन महकमा यह कहकर अपनी पीठ ठोंक लेता है कि हमने लाखों पौधे लगाए, भले ही पौधे जीवित बचें या नहीं। हकीकत में छत्तीसगढ़ में जिसने प्लांटेशन की शुरुआत की और जिसकी याद में आज भी सागौन वेरायटी का नाम रखा गया है, उसे सरकार और वन महकमे ने भुला दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं, मनीराम प्लांटेशन की। पौने तीन मीटर मोटाई वाले सागौन के पेड़ के जंगल, जो अब खत्म होने को हैं। प्रशासन की उदासीनता से पूरा जंगल इतिहास से गुम हो जाएगा।
रायपुर. बार नवापारा से लगे देवपुर के जंगल का एक हिस्सा सागौन की खास किस्मों के लिए जाना जाता है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान मनीराम नाम के एक बीटगार्ड ने सागौन का यह जंगल तैयार किया था, जिसकी उसे सजा दी गई। मध्यप्रदेश सरकार ने तो मनीराम के पोते को सम्मानित कर अपना हक अदा कर दिया पर छत्तीसगढ़ सरकार ने पूछा भी नहीं। मनीराम प्लांटेशन की अब इतनी दुर्गति हो गई कि कुछ साल में नामोनिशान खत्म हो जाएगा।
पौने तीन मीटर की मोटाई और 28 मीटर तक ऊंचे मनीराम के सागौन देखकर लोग दांतों तले ऊंगली दबा लेते हैं। आज से 110 साल पहले मनीराम ने देवपुर के जंगल में सागौन के पौधे रोपे थे। जानकार इसे हरा सोना कहा जाने वाला सागौन रोपने की शुरुआत मानते हैं। प्लांटेशन की नींव रखने वाले मनीराम की गांववाले पूजा करते हैं। उसी जंगल में एक पत्थर को मनीराम का प्रतीक मानकर हर त्योहार में पूजा जाता है। वन विभाग ने सिर्फ एक बोर्ड लगाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, फिर मुड़कर नहीं देखा। आज मनीराम के लगाए पौधे एक-एक कर जड़ समेत नीचे गिर रहे हैं। महकमे की लापरवाही से बड़ा रकबा सिमटकर एक एकड़ भी नहीं बचा। आसपास खेत बन गए हैं। मनीराम के लगाए खास किस्म के पेड़ तो अब उंगलियों में गिने जा सकते हैं। सौ पेड़ अब सिर्फ तीन ही रह गए, जो अपनी वजन के कारण अब गिरने को है। वन महकमे ने खास किस्मों को सुरक्षित रखने की पहल भी नहीं की। देवपुर और बार नवापारा में सागौन के ऐसे पेड़ और कहीं नहीं हैं, जो मनीराम ने लगाए थे। मनीराम प्लांटेशन का प्रचार भी नहीं किया गया कि ऐतिहासिक प्लांटेशन तक पर्यटक पहुंचे। वन विभाग के पुराने फारेस्ट गार्ड को छोड़ दें तो कोई मनीराम प्लांटेशन के बारे में जानता भी नहीं। पर्यटन विभाग की भी किताब में इसका उल्लेख नहीं है।
तब मिली शांति
गिधपुरी गांव के लोगों का कहना है कि नौकरी से निकाले जाने के बाद मनीराम पागलों की तरह भटकने लगा था, फिर उसकी मौत हो गई। मरने के बाद उसकी आत्मा जंगल और गांव में भटकती थी, जिसे बैगाओं ने मिलकर मनीराम प्लांटेशन के बीच ही एक बरगद के पेड़ में स्थापित किया। इसके बाद उसकी आत्मा शांत हुई और भटकना बंद किया। होली, दिवाली, हरेली सभी त्योहारों में उसकी पूजा की जाती है।
आज भी हैं अवशेष
पिथौरा ब्लाक के कुम्हारीमुड़ा निवासी मनीराम बीटगार्ड था और गिधपुरी के पास ही बेरियर में उसकी पोस्टिंग थी। जहां बेरियर था, वहां की जगह उथली है। बेरियर के पास कुआं भी था, जो आज पट गया है, लेकिन कुआं की निशानी आज भी बाकी है। कुएं के पास ही आम के पेड़ हैं, जो जीवित हैं। गांववालों का कहना है कि पेड़ में आज भी काफी फल लगते हैं। आम के पेड़ काफी मजबूती से जमे हुए हैं।
अब कोई देखने भी नहीं आता
गिधपुरी निवासी कुंजराम बुड़ेक का कहना है कि लंबा अरसा बीत गया है, कोई अब मनीराम प्लांटेशन देखने भी नहीं आया। 17 साल पहले मध्यप्रदेश शासनकाल में मंत्री शिवनेताम ने मनीराम के पोते प्रेमसिंह का सम्मान किया था। फिर लोग प्रेमसिंह को भी भूल गए। अब उसका भी निधन हो चुका है। सिघरू गोंड़, जो बैगा भी हैं, बताते हैं कि मनीराम की आत्मा जंगल की रखवाली के लिए चिंतित थी। पूजा करने के बाद उसकी आत्मा तो शांत हो गई, लेकिन जंगल की रखवाली करने अफसर नहीं आए। गिधपुरी के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक जनकराम दीवान और गोसाईराम साहू मनीराम प्लांटेशन का इतिहास नहीं जानते थे, लेकिन उनकी इच्छा है कि वे बच्चों को मनीराम प्लांटेशन का इतिहास बताएं और बच्चों को पौधरोपण की शिक्षा दें।

मनोज व्यास जी के भी सन्दर्भ में