गुरुवार, 25 अगस्त 2016

बीहड़ का रॉबिन हुड कुख्यात डकैत माधो सिंह जिसने 23 क़त्ल और 500 किडनैपिंग की थीं .के तगड़े हाथ ,चौड़ी हथेली के बीच मेरा छोटा सा हाथ दब सा गया,,,,,,,,?

(अविस्मरणीय मुलाकात के वे पल पुरानी यादों में से )

मेरे बचपन के ५-६ वर्ष बुंदेलखंड के झाँसी बीना खुरई रहेली दमोह और सागर में बीता ।चलना और बोलना मैंने उसी भूमि पर प्रारम्भ किया था। क्योंकि मेरे पिता जी वहा पर शासकीय सेवा में थे। किसी न किसी शाम को तड तड तड की आवाज़ आते ही बाहर बैठी जनानियां हल्ला मचाना शुरू कर देती बाई ,महतारी जे मोढा , मोढ़ी को द्वारी ले आ,बच कें रओ , , जे मारते नही "कुचर" देते हैं , डकैत आ गए रे , हव ह,,,व ।
और एक तरह के भय के साये में लोग घर के अंदर ही जाते थे। बाहर सिर्फ सड़को में टिमटिमाती कंदील रह जाती या वातावरण में गूंजती तड तड की आवाज़।
अविभाजित मध्यप्रदेश में किसी भी अधिकारी / कर्मचारी को उनके वरिष्ठ आधिकारियो या टुटपुंजिया नेताओ के द्वारा धमकाना होता था। तो वे उसे भिंड ,मुरैना भिजवाने की धमकी दिया करते थे। और बाद में यही धमकी नक्सल प्रभावित छेत्र के लिए हो गया। वैसे मैं नक्सल प्रभावित एरिया में रहा हु ,और वहां पर के खट्टे मीठे अनुभव भी लिखूंगा।
खैर मध्य प्रदेश की चंबल घाटी कई कुख्यात डाकुओं और बाग़ियों का गढ़ रही है. एक समय में शिवपुरी, मुरैना, रीवा, चित्रकूट ,गुना ,झाँसी ,बीना जैसे इलाकों में इन डकैतों का ख़ौफ़ था. हैरानी की बात ये है कि इनमें से कुछ पढ़े-लिखे भी थे. कोई फ़ौज में था तो किसी ने डॉक्टरी की पढ़ाई की थी. लेकिन इनके जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आई थीं, जिन्होंने इन्हें डकैत या बागी या डाकू बनने पर मजबूर कर दिया। लेकिन लोगो में आज भी इनके प्रति श्रद्धा है।
मान सिंह -इन्हें आज भी लोग अत्यंत ही श्रद्धा पूर्वक याद करते है। और जिनके सहयोगी डाकू कभी भी महिला और बच्चो निसहाय और बुढ्ढो पर हाथ नही उठाते थे। बल्कि डकैती के दौरान भी आदर पूर्वक उनके पैर छूते थे। एक बार आगरा में डकैती करने गए सेठ को पहले सूचना भेज दी गयी थी (उस समय डकैती करने से पहले सूचना चिठ्ठी के द्वारा भेज दी जाती थी)।
अंग्रेज कप्तान छुट्टी लेकर आगरा से भाग गया।
तय समय पर डकैती शुरू हुई।
मान सिंह सेठ के साथ उसके बैठक में बैठ गए सेठ ने तिजोरी की सभी चाभियां मानसिंह को दे दी
इसी बीच एक डकैत ने सेठ की एक बेटी से छेड़खानी कर बैठा लडकी चिल्लाने लगी..
लडकी की आवाज सुनकर सेठ घर के अंदर की ओर भागा, बेटी ने कहा एक डकैत ने मेरे साथ छेड़खानी की है।
मान सिंह ने पुरे गिरोह को लाइन में खड़ा किया लड़की को अपने पास बुलाया बोले बेटी पहचान कौन था। जैसे ही लड़की ने डाकू को पहचाना मानसिंह ने डाकू को गोली मार दी,
उस सेठ से और उसकी बेटी से माफ़ी मांगी व सारा सामान उसके घर में छोड़ साथी कीलाश लेकर लौट गए !!!
आंकड़े बताते हैं कि 1935 से 1955 के बीच डकैत मान सिंह ने करीब 1,112 डकैतियों को अंजाम दिया था और 182 हत्याएं की थीं. इनमें से 32 पुलिस अधिकारी थे. 1955 में सेना के जवानों से मुठभेड़ में मान सिंह और उसके पुत्र सूबेदार सिंह की गोली लगने से मृत्यु हो गयी.एक पुत्र तहसीलदार सिंह सर्वोदय के काम करने लगे।
-मलखान सिंह को बागी परिस्थितियों ने बनाया. उसके गांव के सरपंच ने मंदिर की ज़मीन हड़प ली थी. जब मलखान सिंह ने इसका विरोध किया तो सरपंच ने उसे गिरफ़्तार करवा दिया और उसके एक दोस्त की हत्या करवा दी. बदला लेने की मंशा से मलखान सिंह ने बंदूक उठा ली और बागी बन गया. उसने बाद में आत्मसमर्पण कर दिया.।
अंबिका प्रसाद उर्फ़ ठोकिया -गांव में डॉक्टरी और कम्पाउंडरी करने वाला पढ़ा-लिखा इंसान था. लोग उसे डॉक्टर के नाम से संबोधित करते थे. एसटीएफ के साथ मुठभेड़ में वो मारा गया था । माधो सिंह शिक्षक थे।
खैर आगे विषय वास्तु में आते है ,हम लोगो को साल में कई बार भोपाल शासकीय काम से जाना होता था। वहां पुरे प्रदेश के लोग आते थे मेरे कुछ मित्र डकैत एरिया में वर्षो से जमे थे। उनसे मैं पूछा करता करता की उन्हें काम करने में कोई दिक्कत नही आती। उनका जवाब होता नही तो बल्कि बीहड़ के गांव में यदि उनका कैंप लगा है। तो वे आमंत्रित भी कर यथेचित सम्मान पूर्वक ग्राम की समस्याओ को बता कर सुलझाने में मदद भी करने बोलते है। और आज पर्यन्त उन्होंने किसी भी शासकीय काम में दखलंदाज़ी नही किया है।
मैंने कहा दिखने में तो वे खतरनाक होते होंगे। उनमे से एक मेरा मित्र जो की भिंड में पदस्थ था ने मुझे कहा आप शाम ०६ बजे ,,,,होटल में जहाँ में जहाँ पर मैं ठहरा हु आना । मैं होटल पंहुचा। इधर उधर की बाते होती रही तभी डोर बेल बज़ी। भार्गव जी ने दरवाजा खोला आइये मास्टर साहब।एक लंबा तगड़ा सा आदमी अंदर की और आया। मास्टर साहब इनसे मिलिए मेरे मित्र है शर्मा जी .मेरी और उनका हाथ बढ़ आया ।तगड़े हाथ में चौड़ी हथेली के बीच मेरा छोटा सा हाथ दब गया। मैं मंत्र मुग्ध उसे देखता ही रह गया। तीखी नज़रे वाले उस इंसान को जिसने 23 क़त्ल और 500 किडनैपिंग की थीं. 1960 से 1970 के दशक में माधो सिंह का चंबल में आतंक था।माधो सिंह को बीहड़ का रॉबिन हुड बोला जाता था। क्योंकि ये ज़्यादातर अमीरों के यहां डांका डालता था. लेकिन अंत में उसने और उसके 500 साथियों ने श्री जय प्रकाश नारायण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.
उसने मेरे से रायपुर शहर की जानकारी लिए ,और बताया की वे वहां पर आने वाले है। मिलिएगा। मैंने भी कहा जरूर।
बात आयी गयी हो गई। एक बार मीटिंग अटेन्ड करने धमतरी से रायपुर आया। मीटिंग ख़त्म हुआ मेरे साथ आये सहायक ने रजबंधा मैदान में लगे मीना बाजार देखने की इच्छा जाहिर की। दोनों वहां देखने चले गए। घूमते घूमते एक बोर्ड पर नज़र पड़ी। बागी आत्म समर्पित जादूगर माधोसिंह का जादू का कमाल देखिये।
आस्चर्य से देखते हुए हम स्टाल के नज़दीक पहुचे अरे मास्टर .की आवाज़ सुनी.....? मैंने गौर से देखा की कौन है ..?
पहचान नज़दीक पंहुचा गले मिले ,वैसे वे मुझसे लम्बे और काफी तगड़े थे। आस्चर्य भी इन्होंने मुझे कैसे पहचान लिया ,,,?अरे मास्टर साहब आप भी जादूगर बन गए।
चाय पिलाई बातचीत हुई और उन्होंने जादू देखने का आग्रह भी किया। मैंने भी उन्हें बताया की कॉलेज के दिनों में मैं भी स्टेज में तालाबंद संदूक के भीतर सील बंद थैले में से गायब हो दर्शको के बीच I am hear कहते हुए निकल चूका हु। .वे खुश हुए और मेरे धमतरी क्वार्टर का पता लिया। और बताया की वे धमतरी एक चैरिटी शो करने आने वाले है। तब आपके यहां आऊंगा।
तब मेरी नई नई शादी हुई थी। पत्नी को घर आने पर पूरी बात बताई।
काफी नाराज़ हुयी की डाकू वो भी इतना खतरनाक को क्यों बुलाया घर में और हम दोनों में इस बात को लेकर रात को झगड़ा भी हो गया।
लगभग ३,४ दिनों के बाद सुबेरे ०८ बजे दरवाज़े में किसी ने दस्तक दी। वही पर पत्नी जी ने जो की अखबार पड़ते हुए बैठी थी दरवाज़ा खोला ,
सर है क्या उसने आदर से पूछा आप कौन है ,,?
जी मैं उनकी धर्मपत्नी हु ,उसने बड़े ही विनम्रता पूर्वक पत्नी जी को प्रणाम किया
आप बैठिये वे बाथरूम में है आ ही रहे है ,नही माने वे बाहर ही खड़े रहे
तब तक मैं आ गया ,वे अंदर साथ में आकर बैठ गए ,और हम दोनों जादू शो की बाते करने लगे। तथा उन्हें मैं अपने भी जादू के उपकरण दिखाने लगा।
वे प्रभावित होकर उसमे से कुछ सामग्री मुझसे उन्हें देने का आग्रह किया क्योंकि तब वे बहुत ही मुश्किल से प्राप्त हो पाते थे।
मैं न नुकुर कर रहा था
तभी पत्नी चाय और पोहे लेकर उपस्थित हो गई थी ने हमारी बात सुनी थी ,ने उस डाकू के तरफ हो उसे दे देने का आग्रह किया ,आप और मंगा लीजियेगा।
और मैंने दे दी,और डाकू के नाम से ही झगड़ने वाली पत्नी की मुह देखने लगा।
शायद धर्म पत्नी जी दुर्दांत डाकू की जगह विनम्र और स्त्री के सम्मान करने वाले मास्टर साहब से प्रभावित हो गयी थी । जबकि डकैतों में सबसे ज्यदा भयानक और कठोर दिल के थे माधौ सिंह और मोहर सिंह. इन पर 2.5 लाख के इनाम के साथ इनके बड़े गिरोह पर कुल 5 लाख का इनाम था. बताया जाता है कि यह अपने शिकार के नाक-कान काट देते थे

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Lalit Sharma बढिया दास्तान। अत्याचार के विरुद्ध बंदूख उठाने के कारण इन्हे बागी कहा गया। डाकू शब्द तो इन्हें गाली जैसा लगता था।
Subhash Chandra "मान सिंह -इन्हें आज भी लोग अत्यंत ही श्रद्धा पूर्वक याद करते है। और जिनके सहयोगी डाकू कभी भी महिला और बच्चो निसहाय और बुढ्ढो पर हाथ नही उठाते थे।" ज्ञान वर्धक, इतिहासिक एवम् रोचक
Darshan Kaur Dhanoe बचपन में अपने पुलिस पिताजी से इनके बारे में पता चला था फिर कई प्रदर्शनियों में इनकी मुढभेट के फोटू देखे थे।
1977 में जब मेरे बड़े भाई की पोस्टिंग चम्बल में हुई थी तो वो वहां के किस्से सुनते थे । तब कोई महिला डाकू भी वहां सक्तिय थी ।

Guddu Sonwane i cant understood
UnlikeReply123 hrs
Sachin Tyagi बढिया विवरण, इनके बारे में पता चला की यह बागी क्यो और कैसे बने।
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रमता जोगी बहुत सुन्दर विवरण सर। साधुवाद....
UnlikeReply122 hrs
Dk Sharma धन्यवाद ,मेरा सौभाग्य सर ,आप लोगो ने जो इसे पसंद किया।
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Sharad Shukla रोचक संस्मरण ।
UnlikeReply122 hrs
Dk Sharma धन्यवाद शुक्ला जी
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Mukesh Pandey Chandan सागर जिले में तो पूजा बब्बा , हरि सिंह आदि प्रसिद्ध डकैत थे . वैसे बुंदेलखंड में आज मलखान सिंह भी श्रद्धेय है . बढ़िया जानकारी दी आपने .
UnlikeReply121 hrs
Dk Sharma धन्यवाद सर वैसे लुक्का उर्फ़ लुकमान , रूपा ,सुल्ताना डाकू ,व कुछ साल पहले तक ददुआ , सीमा परिहार ,राम बाबु ,दयाराम गडरिया ,सुदेश कुमार पटेल उर्फ़ बलखड़िया आदि भी प्रसिद्ध रहे है। वैसेबुंदेलखंड में आज मलखान सिंह भी श्रद्धेय है ये सही है इन पर फिल्म भी...See More
LikeReply10 hrsEdited
Ragini Puri बहुत ही रोचक और insightful विवरण. पढ़ के डाकुओं के बारे में और समझने को मिला. फ़िल्म पान सिंह तोमर में भी 'बाग़ी' और 'डाकू' शब्द पर टिप्पणी की गयी है।
UnlikeReply119 hrs
Dk Sharma thanks ragini ji
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Ashutosh Singh प्रिय शर्मा सर 
बहुत सूंदर व् जीवंत आपका लेख है. लेख व् डाकू नही बागियो के विवरण पर L K Sharma सर से भी फीडबैक मिलनी चाहिए.

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Pramod Sharma माधोसिंह के घर व परिवार को देखने का अवसर मुझे भी मिला है मुरैना में .७१में डाकुओं के समर्पण के बाद जोरा अलापुर (मुरैना ज़िला में तहसील मुख्यालय )में विश्वविद्यालय स्तर का कैम्प लगाथा राष्ट्रीय सेवा योजना का. रविशंकर विश्वविद्यालय में सर्व प्रथम बलोदा ...See More
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Dk Sharma धन्यवाद Sharma ji श्री एस एन सुब्बराव जी को ही बागियो के आत्मसमर्पण कराने का पूरा श्रेय था।
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Dk Sharma

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