इंजीनियरिंग की मिसाल पेश करती सदियो से भूसे को बचाती है पत्तो से बनी " छनेरा "
कुछ वर्ष पूर्व मैं खरगोन तथा बड़वानी जिले की और से गुजर रहा था। मुझे ग्रामीण एरिया की और जिले के आदिवासी क्षेत्रो में घरो के पास झोपड़ीनुमा बनी चीज़ ने काफी ध्यान खींचा। बाद में मैंने वहां के स्थानीय निवासियों से इस सम्बन्ध में और जानकारी प्राप्त की। पता लगा कि इसका नाम " छनेरा " है।
जिले की आदिवासी क्षेत्रो में सदियो से चली आ रही छनेरा बनाने का काम अभी भी बदस्तूर जारी है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होने वाली झाडि़यो (आइपोमिया) बेशरम ,बांस से बनी यह छनेरा वर्षाकाल में पशुओ को दिये जाने वाले भूसे का ख़राब होने से बचाती है।
स्थानीय स्तर पर लगे पेड़ो की डालियो, बांस की खपचियो व घास-फूस से बनी इन छनेरा में आदिवासी अपने खेतो में लगे गेहूं से निकलने वाले भूसे को वर्षा के पानी से बचाने हेतु सहजते है।
देखने में कमजोर लगने वाली इन छनेरा को इतनी बारिकी व कुशलता से बनाया जाता है कि खुले में बनी इन छनेरा में वर्षा का एक बूंद पानी भी प्रवेश नही कर पाता। जिसके कारण इसमें भरा भूसा हवा-पानी से पूरी तरह सुरक्षित रहता है।
इन छनेरा के नीचे की तरफ एक वर्ग फुट से कुछ छोटा एक दरवाजा भी बनाया जाता है। इसी दरवाजे के माध्यम से भूसा निकालकर पशुओ को खाने के लिए दिया जाता है।
इंजीनियरिंग की मिसाल पेश करती इन छनेरा की संख्या आदिवासी अपने खेते से निकलने वाले भूसे व पाले गए पशुओ की संख्या के अनुसार बना कर रखते है। अलबत्ता इन छनेरा का आकार-प्रकार लगभग एक जैसा ही रहता है। इसका कारण यह है कि इस परिमाप की बनी छनेरा में भरा भूसा नीचे बने दरवाजे तक बिना किसी परिश्रम के स्वतः ही आता रहता है। अगर आपको पशुओ को निकालकर भूसा नही खिलाना हो या घर के सभी सदस्य कुछ दिनो के लिए बाहर जा रहे हो तो छनेरा में नीचे बने निकासी दरवाजे को खुला छोड़ दे। पशु निकासी दरवाजे में बारी-बारी से मुंह डालकर भूसा खाते रहेंगे। चूंकि उपर से भूसा स्वतः नीचे आता रहता है, इसलिए पशुओ को भूखा नही रहना पड़ता।
गज़ब का है न ग्रामीणों में भी किसी चीज़ को सहेजने ,और सही तरीके से उसके उपयोग हेतु दिमाग ,आप क्या कहते है ?
जिले की आदिवासी क्षेत्रो में सदियो से चली आ रही छनेरा बनाने का काम अभी भी बदस्तूर जारी है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होने वाली झाडि़यो (आइपोमिया) बेशरम ,बांस से बनी यह छनेरा वर्षाकाल में पशुओ को दिये जाने वाले भूसे का ख़राब होने से बचाती है।
स्थानीय स्तर पर लगे पेड़ो की डालियो, बांस की खपचियो व घास-फूस से बनी इन छनेरा में आदिवासी अपने खेतो में लगे गेहूं से निकलने वाले भूसे को वर्षा के पानी से बचाने हेतु सहजते है।
देखने में कमजोर लगने वाली इन छनेरा को इतनी बारिकी व कुशलता से बनाया जाता है कि खुले में बनी इन छनेरा में वर्षा का एक बूंद पानी भी प्रवेश नही कर पाता। जिसके कारण इसमें भरा भूसा हवा-पानी से पूरी तरह सुरक्षित रहता है।
इन छनेरा के नीचे की तरफ एक वर्ग फुट से कुछ छोटा एक दरवाजा भी बनाया जाता है। इसी दरवाजे के माध्यम से भूसा निकालकर पशुओ को खाने के लिए दिया जाता है।
इंजीनियरिंग की मिसाल पेश करती इन छनेरा की संख्या आदिवासी अपने खेते से निकलने वाले भूसे व पाले गए पशुओ की संख्या के अनुसार बना कर रखते है। अलबत्ता इन छनेरा का आकार-प्रकार लगभग एक जैसा ही रहता है। इसका कारण यह है कि इस परिमाप की बनी छनेरा में भरा भूसा नीचे बने दरवाजे तक बिना किसी परिश्रम के स्वतः ही आता रहता है। अगर आपको पशुओ को निकालकर भूसा नही खिलाना हो या घर के सभी सदस्य कुछ दिनो के लिए बाहर जा रहे हो तो छनेरा में नीचे बने निकासी दरवाजे को खुला छोड़ दे। पशु निकासी दरवाजे में बारी-बारी से मुंह डालकर भूसा खाते रहेंगे। चूंकि उपर से भूसा स्वतः नीचे आता रहता है, इसलिए पशुओ को भूखा नही रहना पड़ता।
गज़ब का है न ग्रामीणों में भी किसी चीज़ को सहेजने ,और सही तरीके से उसके उपयोग हेतु दिमाग ,आप क्या कहते है ?
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