गुरुवार, 25 अगस्त 2016

बटकी में बासी अउ चुरकी में नून - में हा  गावत हावो  ददरिया  तें  हा कान  धर के  सून "
हम छत्तीसगढ़िया बटकी(कांसे का पात्र) में बासी और चुरकी  में नून तो  खाते ही है। और यही तो हमारा जीवन है ।   क्‍योंकि धान से ही तो हमारे  छत्‍तीसगढ का जीवन है । धान पर आधारित  अनेको लोकगीत बने हुए है। अर्थात धान  हमारे  गीतों में भी रचा-बसा है।
"बतकी में बासी ,दोना में दही ,
पटवारी ल बलादे  , नापन  जाही। "
  हम पके चावल को छोटे पात्र (बटकी) में पानी में डुबो कर ‘बासी’ बनाते हैं और एक हांथ के चुटकी में नमक लेकर दोनों का स्‍वाद ले के खाते हैं। ‘बासी’ रात  में डुबाया भात (पका हुआ चाँवल )  और दिन में पानी में  डुबोया भात " बोरे " कहलाता है। ह  भाई यही आम ग्रामीण  छत्तीसगढ़ियों का  प्रिय भोजन है।

और यदि साथ में दही या मठा (माहि )हो। आम के अरक्का (आचार ) ,चटनी  हो। घर के बाडी में लगाये  कांदा (शकरकन्द )की या खेड़ा  की   भी भाजी खट्टी सब्‍जी या  लाल फुल वाले  अमारी के छोटे पौधे के कोमल-कोमल पत्‍तों या उसके फूल  से बनी खट्टी चटनी ,लाइबरी (धन की लाइ  फोड़कर उससे  बनी बड़ी ) बिजोरी ,पापड़ और प्याज़  भी  साथ में हो तो क्या बात है ?

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