जब छत्तीसगढ़ को शासन द्वारा भी जादू -टोना करने वालो की भूमि ((LAND OF WITCHES ) समझा जाता था - भाग -1
लोग माने या नही माने किन्तु यह सत्य ही है की अंधविश्वास के चलते टोनही , परेतिन ,डायन या रक्सा का नाम आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भय पैदा कर देने के लिए पर्याप्त है। सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है। इस कथित काला जादू को लेकर टोना टोटका और टोनही जैसे संवेदनशील मुद्दे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों मे अपना प्रभाव रखती है। और इससे बचने के उपाय आम जन आज भी करते ही रहते है।तत्कालीन डेपुटी सुप्रिन्टेण्डेन्ट सेन्सस ऑफ़ इंडिया श्री के . सी दुबे ,और उनकी टीम जिसमे श्री बी एल परगनिहा,श्री एच एन पाण्डेय इन्वेस्टिगेटर, और गुंडरदेही ब्लॉक के एस, इ ,ओ एम् एल ठाकुर भी शामिल थे। जिनको व्यक्तिगत तौर पर मैं जानता हु, ने बालोद जिले (तब दुर्ग ) में गुंडरदेही के ग्राम कोसा का सर्वे किया था । " census of india १९६१ " पुस्तक में लिखा गया है ही इस लेख का आधार है। लेकिन आज के सन्दर्भ में भी ये तथ्य मान्य नही ह। और इसे सत्य नही मानते हुए सिर्फ मनोरंजन के तोर पर लेवे।
इस पुस्तक के अनुसार " हेविटजे,पी ,के द्वारा अपने ( Report on the settlment of the raepore district 1869 ) में छत्तीसगढ़ के बारे में अपने रिपोर्ट में लिख कर प्रकाशित किया था , की छत्तीसगढ़ को बाहर के लोग चुड़ैलों की भूमि (land of witches ) समझते है। " और उनकी धारणा 2nd वर्ल्ड वॉर ख़त्म होने के बाद छत्तीसगढ़ के आर्थिक विकास होने के बावजूद भी कायम थे।
देश की आज़ादी के बाद नए कल कारखाने खुलने लोगो के रोज़गार के लिए शहर की और पलायन होने से और उनका शहरीकरण होने से इस कलंक से धीरे धीरे मुक्ति मिलने लगी। और यह कलंक अंदरुनी ,और पहुंच विहीन गाव तक हि सिमित हो गए।
छत्तीसगढ़ में ये विचेस मर्द टोन्हा और औरत हो तो टोनहिन कहलाने लगे। यह शब्द टोना मतलब काला जादू से लिया गया है ।
नागा गोंड जो की जादू से शेर बन जाता था ,,,?
श्री के सी दुबे के पुस्तक में उपरोक्त संदभो पर बिन्द्रानवागढ़ के गांव देबनाई का नागा गोंड का उदाहरण दिया है जो की ( टाइगर ) शेर के रूप में आकर 08 लोगो को नुकसान पंहुचा चूका है। और जिसे वर्ष 38 या 39 में ब्रिटिश शासन ने गिरफ्तार किया था। जादू टोना का गहन जानकार और वेश बदलने में माहिर था । और इस बात की प्रमाण तत्कालीन ब्रिटिश शासन के रिकॉर्ड में दर्ज़ भी है।
तत्कालीन जॉइंट सेक्रेटरी गृह मंत्रालय भारत शासन श्री जी जगत्पति ने भी २७/७/1966 को इस पुस्तक मे लिखा था की भिलाई स्टील प्लांट जैसे आधुनिक तीर्थ से 15 मील के भीतर के गावो तक में लोग बुरी आत्माओ की उपस्थिति को आज भी मानते है। तो न जाने पहुच विहीन छेत्रो में क्या हाल होगा। इसके निजात दिलाने हमे प्रयास की आवश्यकता है।
( उन्होंने यह बात दुर्ग के समीपस्थ गाव कोसा के सम्पूर्ण विलेज सर्वे करने के बाद उसके आधार से लिखा था)
इसी पुस्तक के चैप्टर v page no .107 -138 तक belifes and religion के सब टाइटल्स में सुपरनैचुरल स्परिट रक्सा ,भूत ,शैतान , female sprit परेतिन ,चुडेलीन ,टोनहिन की ट्रेनिंग वीर मसान ,ग्रामीण देवता ,ठाकुर देव ,भैंसासुर ,माता ,सात बहिनिया मारापाट,गढ़खुण्डा देव ,सहारा देव ,बरम देव ,आदि आदि देवो के बारे में सुपरनैचुरल पावर गांव की धारणा पर विस्तृत प्रकाश डाला है।
मेरे इस लेख को प्रकाशित करने का उद्देश्य अंधविश्वास फैलाना नही है ,और न ही इसके प्रमाणिकता के लिए मेरे पास कोई प्रमाण ही है। यह पुस्तक मेरे पास उपलब्ध है। उसके ही आधार से सम्बंधित गाव के लोगो से ही काफी पूर्व में बात कर मैंने पुस्तक में लिखे तथ्यों की पुष्टि भी की थी। ( क्रमशः )
आपको पसंद आये तो कमेंट करे ताकि आगे के भाग भी प्रकाशित कर सकु ,,,,,?
नीचे सम्बंधित पुस्तक की फोटो :-
Dk Sharma's photo.
जब छत्तीसगढ़ को शासन द्वारा भी जादू -टोना करने वालो की भूमि ((land of witches ) समझा जाता था - भाग - 02
सच है कि अन्धविश्वासी नहीं होने पर भी कुछ बातें जिंदगी में ऐसी होती है जिनका कोई तर्क नहीं होता , हम उन्हें संशय कह कर भूल जाना चाह्ते हैं ।
भूतप्रेत का अस्तित्व साधु संतो, धार्मिक आध्यात्मिक उल्लेखों परामनोविज्ञान की शोध और निष्कर्षों में भी उनके अस्तित्व के कई प्रमाण मिलते हैं। फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि मृत्यु के बाद जीवन का कोई भी अस्तित्व रहता हो या नहीं। लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि भूतप्रेत कितने भी ताकतवार हों, वह मनुष्य का कोई अहित नहीं कर सकते।
खैर छोड़िये इस बात को आगे कहा जाता है की ये टोना जानने वाले मरने से पहले किसी न किसी अन्य युवा आदमी या औरत को ट्रेनिंग देकर अपनी विद्या सीखा जाते है।ऐसा भी विश्वास किया जाता है की ये टोनहिन कुछ अशरीरी शक्तियों को अपने कंट्रोल में रखते है। जैसे की वीर मसान जो को जमीन में गड़े हुए मुर्दो को अपने वश में किये जाते है। और यह इनके ट्रेनिंग का हिस्सा है।नौसिखिए को नग्न ही उनके ट्रेनर 21 रात्रि को ताज़ा गड़े मुर्दो की कब्र और शमशान घाट की परिक्रमा करने भेजते है।
वे स्वयं छुपे हुए इनपर नज़र रखते है। जब इनकी आदत बन जाती है और ये भयभीत होकर भाग खड़े नही हुए तथा प्रमाणित कर दिए की वे ऐसी जगह में अकेले जाने में सक्षम है तो इनसे भूत प्रेत का आह्वान कराया जाता है। साथ ही इन्हे मंत्रसाधित पीली हल्दी से सनी चावल भी दी जाती है ,जिसके फेकने से बुरी शक्तिया इनसे दूर रहती है।
वे स्वयं छुपे हुए इनपर नज़र रखते है। जब इनकी आदत बन जाती है और ये भयभीत होकर भाग खड़े नही हुए तथा प्रमाणित कर दिए की वे ऐसी जगह में अकेले जाने में सक्षम है तो इनसे भूत प्रेत का आह्वान कराया जाता है। साथ ही इन्हे मंत्रसाधित पीली हल्दी से सनी चावल भी दी जाती है ,जिसके फेकने से बुरी शक्तिया इनसे दूर रहती है।
फिर इनके ट्रेनिंग का दूसरा पार्ट जिसमे एक जाति विशेष के कुंवारे मृत व्यक्ती की खोपड़ी में चावल पका कर खाना है। ताकि वह उसके लिए वीर मसान बन सके। इस पूरी ट्रेनिंग के दौरान वे पूर्णतः नग्न रहते है। सूत के एक धागा भी धारण नही करते है। और इस कंडीशन में जब वे घर से बाहर निकलते है। तो पुरे घर के सभी सदस्य को कुछ नशीली पदार्थ खिला पिला जाते है ताकि वे सोये ही रहे और उनका राज़ राज़ ही रहे कोई दीगर न जाने।
क्युकी ये घर से ही नग्न निकलते है और वैसे ही वापस आते है। मतलब की यह भी माना जाता है है कि टोनही आधी रात को निर्वस्त्र होकर अपने घर से मात्र एक दिया लेकर श्मशान घाट की ओर पैदल चली जाती है।। और वहां उसके जैसे ही अनेक महिलाये मिलकरतंत्र साधना करती है।
जनश्रुतियों के मुताबिक देर रात घर से दूर श्मशान में पहुचने के बाद स्वयं के मल का दीपक बनाती है। उस दिए में बाती लगाकर मुत्र व तेल भरकर बिना माचिस के ही प्राकृतिक तरीके से आग जला देती है। \
कुछ लोगो के कथनानुसार टोनही को पीपल ,डुमर आदि के के पेड़ के नीचे बैठकर अमावस्या की रात 12 बजे से बाल खोलकर सर हिला-हिला कर तंत्र साधना करते हुए भी बताया जाता है।छत्तीसगढ़ की ज्यादातर लोक कथाओं में टोनही के बाल खोल कर झूमने - झूपने का वर्णन मिलता है।
क्युकी ये घर से ही नग्न निकलते है और वैसे ही वापस आते है। मतलब की यह भी माना जाता है है कि टोनही आधी रात को निर्वस्त्र होकर अपने घर से मात्र एक दिया लेकर श्मशान घाट की ओर पैदल चली जाती है।। और वहां उसके जैसे ही अनेक महिलाये मिलकरतंत्र साधना करती है।
जनश्रुतियों के मुताबिक देर रात घर से दूर श्मशान में पहुचने के बाद स्वयं के मल का दीपक बनाती है। उस दिए में बाती लगाकर मुत्र व तेल भरकर बिना माचिस के ही प्राकृतिक तरीके से आग जला देती है। \
कुछ लोगो के कथनानुसार टोनही को पीपल ,डुमर आदि के के पेड़ के नीचे बैठकर अमावस्या की रात 12 बजे से बाल खोलकर सर हिला-हिला कर तंत्र साधना करते हुए भी बताया जाता है।छत्तीसगढ़ की ज्यादातर लोक कथाओं में टोनही के बाल खोल कर झूमने - झूपने का वर्णन मिलता है।
माना जाता है कि इस तंत्रसाधना के दौरान उसके भीतर पृथ्वी की तमाम बुरी शक्तियों का प्रभाव आ जाता है। तांत्रिकों का भी दावा हैं की इस साधना के दौरान उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता। तंत्र मंत्र के जानकार बताते है कि काला जादू की शक्ति इतनी प्रभावशाली होती है कि टोनही आसपास मौजूद किसी भी को महसूस कर लेती है।
ऐसा भी कहा जाता है कि टोनही को साधना करते हुए अगर किसी व्यक्ति ने देख लिया तो उसकी मौत हो जाती है। या गंभीर रूप से बीमार हो जाता है। स्वाभाविक है इस तरह के दृश्य देख कर कमज़ोर दिल वाले तो सदमे से ही मर जावेंगे ,थोड़ा मज़बूत होगा तो भी भय से बीमार हो ही जायेगा।
ऐसा भी कहा जाता है कि टोनही को साधना करते हुए अगर किसी व्यक्ति ने देख लिया तो उसकी मौत हो जाती है। या गंभीर रूप से बीमार हो जाता है। स्वाभाविक है इस तरह के दृश्य देख कर कमज़ोर दिल वाले तो सदमे से ही मर जावेंगे ,थोड़ा मज़बूत होगा तो भी भय से बीमार हो ही जायेगा।
लेकिन मेरे एक मित्र के अनुसार कुछ औरतो में जो की एक प्रकार के नशे के आदि होते है नशेड़ी महिलाये ऐसी स्वांग रचती है की उनके इस कार्य में कोई भी भय वश दखलंदाज़ी न करे। ,इनके उस नशे के पदार्थ के कारण ही वे निशान होते है। और इसी जड़ी बूटी जो की लार के साथ इनके मुह से गिरती है वही अग्नि जैसी ज्योति भी पैदा करती है। जिसे भी दूर से रात के अँधेरे में देख लोग भयभीत हो जाते है। बैगाओं या जानकार की माने तो यह निशान उनके कुछ और जड़ी बूटी के तंत्र साधना के दौरान सेवन के कारण बनता है। और वह जड़ी बूटी गांव में ही उपलब्ध रहता है।
टोना करने वाले अपने तेज नज़र व अंदर तक वेधति हुई आँखों (sharp penetrating eyes ) से भी पहचाने जा सकते है। लेकिन यह आवश्यक नही है।
टोना करने वाले अपने तेज नज़र व अंदर तक वेधति हुई आँखों (sharp penetrating eyes ) से भी पहचाने जा सकते है। लेकिन यह आवश्यक नही है।
हरेली और दीपावली की रात्रि बैगाओं से लेकर जादू टोना करने वालों के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है। तांत्रिकों का ये भी दावा हैं की इस साधना के दौरान उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता।
ग्रामीण क्षेत्रों में टोनही के नाम पर प्राय:उल्लू ऑर काली बिल्ली भी इनके काम में मदद करते है। और लोगो के घर के ऊपर में ही रात को आवाज़ लगा कर भय पैदा करते है। शायद ये उल्लू, बिल्ली चूहे खाने मकान के छत पर जाते है। कि ये चूहों और अन्य नुकसान पहुचाने वाले जीव जंतु से हमारे बचाव करते है , इन्हें न मारा जावे यह सोचकर बुजुर्गो ने ये अफवाह फैला दी की इन्हें पत्थर से मारने पर वे उसे मुह में दबा कर पानी में छोड़ आते है ,और उसके पानी में घुलने के साथ जिसने भी उसे फेका था वो बीमार होते चला जायेगा। क्योंकि पहले लोग धान को कोठी में रखते थे और जिसे खाने चूहे काफी आते थे।
पूर्वजो की दूरदृष्टि, दृष्टिकोण
भूत का अस्तित्व है या नही इस पर उस विषय के विशेषज्ञ विचार करेंगे पर यह कडवा सच है कि भूत, प्रेत शब्द सुनते ही हम डर जाते है और उन स्थानो में जाने से परहेज करते है जहाँ इनकी उपस्थिति बतायी जाती है। यदि सही मे भूत केविश्वास को यदि इस दृष्टिकोण से देखे कि हमारे जानकार पूर्वजो ने कुछ जगह के दोषो की बात को जानते हुये उससे भूत को जोड दिया हो ताकि आम जन उससे दूर रहे। इस जगह में न जाये। और किसी भी तरह की दुर्घटना के शिकार न हो जावे।
\अंधविश्वास का दुष्परिणाम - उन औरतों को जुल्म झेलना पड़ता है जो विधवा हैं और अकेले रहती हैं। उनकी जायदाद हड़पने या रेप करने की बदनीयत से अनर्गल आरोप लगाकर परेशान किया जाता है। कभी निर्वस्त्र कर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता है तो कभी गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। ताकि उनकी मकान और अन्य संपत्ति हड़पी जा सके। अंत में यह तो एक आम धारना जो की अन्धविश्वास पर आधारित और मनगढंत ही है। इसके प्रत्यक्चदर्शी आज तक कोई भी नही है जो की इसे प्रमाणित कर सके। ये सिर्फ कमजोर ,नासमझ बुद्धि वाले ही है जो की इस सुनी सुनाई बातो पर विश्वास कर समाज के निरपराध लोगो को नुकसान पहुचाने का कार्य करते है। हमे इसके लिए लोगो को जागरूक करने जन जागरण करने की आवश्यकता आज भी है। ताकि इसके नाम से हो रहे प्रतारणा को रोक जा सके।
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