मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016


      चौरागढ़  पचमढ़ी  ( chouragadh panchmadhi )

डी.के.शर्मा sundarnagar  रायपुर 

समुद्रतल से 4315 फुट की ऊंचाई पर दुर्गम रास्ते और करीब 1175 खड़ी सीढियों चढकर जहां एक क्विंटल से भी अधिक वजन के त्रिशूल चढ़ाने आते हैं ,,,,,?

 पचमढ़ी मुझे अपने कालेज मे अध्ययन के दिनों मे दुर्लभ वानस्पतिक पौधे के एकत्रीकरण के लिये  पहली बार जाना पडा .उस समय वह जगह पूर्णतया प्राकृतिक था. पी .डब्लू .डी के आवास जहा पर ह्मलोग ठहरे हुए थे,से बाज़ार वाली जगह तक पैदल जाकर सुबेरे 09 बजे तक हेवी नास्ता कर और दिन का खाना बाल्टियो मे पूडी और आलू की सब्जी भरकर जगह की दुरी और कच्चे रास्तो को ध्यान मे रखकर पैदल या साइकिल किराये मे लेकर अपने स्थानीय गाइड सरदार जी के साथ जंगल,पहाड़ की ओर निकल पड़ते थे.
सतपुड़ा श्रेणियों के बीच स्थित होने और अपने सुंदर स्थलों के कारण इसे सतपुड़ा की रानी भी कहा जाता है। इस स्थान की खोज केप्टन जे.फॉरसोथ ने की थी। उन्हें यहां सन् १८६२ में, सतपुड़ा के इस भाग के अन्वेषण के लिए भेजा गया था। उन्होंने यहां एक फॉरेस्ट लॉज का निर्माण किया .

उसी रास्ते से होते हुए अंतिम दिन हमारी यात्रा चौरागढ़ , समुद्रतल से 4315 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान पर पहुंचने पर चढ़ने का था, महादेव के रास्ते होते हुये जहा तक साइकिल मे पहुच पाये पहुचकर पहाड़ी रास्तो पर 05km पैदल और फिर दुर्गम रास्ते और करीब 1175 सीढि़यां की खड़ी खड़ी सीढियों चढकर पचमढ़ी की दूसरी सबसे ऊंची पहाड़ी चौरागढ़ तक जैसे तैसे पहुच कर थकावट से चूर थे.

भगवान शिव की बैठी मुद्रा मे उस समय खुली मूर्ती रखी थी ,मंदिर के नजदीक सीढि़यों के आसपास गड़े हजारो त्रिशूल को देखकर एक बार तो हम भीआश्चर्य मे पड़ गये । त्रिशूल की कतारों के बाद मंदिर के प्रांगण में त्रिशूल के अंबार देखकर तो सचमुच हैरत होती है। हमने इसका कारण जानना चाहा तो मालूम हुआ कि कई अन्य जगहों की तरह यहां भी श्रद्धालु मनौतियां मानते हैं और मांगी मुराद पूरी होने पर वे परंपरा के अनुसार त्रिशूल चढ़ाते हैं। भक्त अपनी क्षमता के अनुसार विभिन्न आकार के त्रिशूल भगवान शिव को अर्पित करते हैं। इसीलिए यहां छोटे-बड़े हजारों त्रिशूल रखे नजर आते हैं। जिनमे से तो कई त्रिशूल ऐसे थे की उन्हें वहां तक कैसे लाये गये होगे सोचकर हैरानीहोताहै.

गवान शिव को त्रिशूल भेंट करने के लिए श्रद्धालु बड़े जोश के साथ मंदिर जाते हैं। 

सीढि़यां चढ़ते-चढ़ते हम बहुत थक गए थे। अत: मंदिर में दर्शन करने के बाद मंदिर प्रांगण में आ बैठे। वहां से चारों ओर का विहंगम दृश्य पचमढ़ी वन संरक्षित क्षेत्र, जलप्रपातों और घाटी का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। जो कीअत्यंत हि मनभावन प्रतीत हो रहा था। दूर जहां तक नजर पहुंच पा रही थी, हरी-भरी निश्चल पहाडि़यां ही दिख रही थीं और सुनाई पड़ रहा था केवल पक्षियों का कलरव। ऐसा शांत और सुरम्य वातावरण भला और कहां मिलेगा। इसीलिए इसे हर मौसम के लिए उपयुक्त पर्यटन स्थल माना जाता है।भक्तों के अलावा वे पर्यटक जिन्हें साहसिक कार्य करना अच्छा लगता है या जो प्रकृति प्रेमी हैं वे भी यहाँ सैर करने के लिए लोग यहाँ परआते हैं।
वहा से शाम होने से पूर्व ही ह्म लोग लौट आये थे ,यहा पर की गई यात्रा की स्मृतिया आज भी जीवित है.ह लेकिन दूसरी बार जब गये थे तो पंचमढी मे हर जगह पहुचे थे सिवा इस जगह के. क्युकि फिर से उतनी सीढिया चढ़ने और पैदल जाने की हिम्मत नही हुई.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें