शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

*बाघ के बदले का शिकार * सरपंच *

  (शिकार कथा )

ब्लॉगर- देवेन्द्र कुमार शर्मा ,113 सुंदरनगर रायपुर छत्तीसगढ़ 


 छत्‍तीसगढ मे स्थित धमतरी जिले का मगरलोड सभी दिशाओ मे नदी नालो से घिरा हुआ   जगह है,विकास खण्ड मुख्यालय मगरलोड तक आने के लिये बहुत से गाव जंगल के रास्ते से हि आया जा सकता था .
पहले जंगल और  घने थे.व अनेको गावो तक पहुचने के लिये रास्ते सिर्फ पगडण्डी या बैलगाड़ी के चलने योग्य रास्तो का हि सहारा था.
ऐसे हि रास्ते सिंगपुर व मोहदी के बीच मे भी था .रास्ते मे कई छोटे बड़े अनेको नालो को पार करना पडता था .
वही समीप एक ग्रामपंचायत का  सरपंच (अब नाम याद  नही है ) सायकल मे  ब्लॉक मुख्यालय कार्यवश  चले आ रहा था.
रास्ते मे एक बड़ा नाला पड़ा जिसकी दोनो और के पार उंचे थे . व ऊपर से नाले के बीच दिखलाई नही देता है   तब पुल पुलिया नही बने हुए थे . नाले के समीप आने पर ढलान की वजह से उसकी साइकिल  की स्पीड बढ़ गयी थी .वह अपने धुन मे मस्त हो आ रहा था  ,की बीच रास्ते मे  पानी वाली जगह से पहले किसी चीज़ से टकरा कर सायकल सहित गिर गया. उसे कुछ समझ मे आता इसके पहले हि उसने एक दहाड़ के साथ किसी जानवर को भागते  देखा .
सरपंच के प्राण सुख गए जब उसने देखा की अरे ये तो बाघ है . वास्तविकता मे वहां पर बाघ बैठे हुआ था. लेकिन वो कुछ  कर  भी नही   सकता था ,  बाघ जिसका मुह दूसरी और था के पीठ  मे पीछे से टकरा कर गिर गया था ,बाघ भी आचानक आये इस विपत्ती से घबरा कर तुरंत ही कूद कर दूसरी दिशा मे  भाग गया .
इधर सरपंच जल्दी से  डर कर गिरते -पड़ते उठकर  पाव -पाव साइकल सहित ऊपर  पार मे पहुच्च कर.और फिर फुर्ती  से साइकल मे सवार हो सामने की दिशा मे सामने  भाग लिया .
भागते भागते उसने हिम्मत कर पीछे  नाले की दिशा मे देखा  . दूर मे उसने बाघ को अपने और हि देखते पाया..फिर तो उसने पीछे मुड़कर भी नही देखा.
सीधे ही मगरलोड के ऑफीस मे पहुचकर  ही दम लिया लोगो ने उसे  घबराहट मे   पसीना पसीना देख माजरा पूछा .,,,,,,,,?
करीब 10 =मिनट बाद  मे हि वो पानी  पी  कर नार्मल  हो पाया .   तब उसने  अपने  साथ  घठित  पूरा वाक्या लोगो को सुनाया . लोगो ने उस घटना के खूब मज़ा लिये .
फिर जान बचने की खुशी मे ! समीप हि स्थित बजरंगबली की मन्दिर मे जाकर  नारियल फोड़ने चला गया .  .कार्यालय मे भी  उसका काम तुरन्त हि निपटा दिये गये ताकि वो दिन रहते हि सुरक्छित जल्दी घर वापस जा सके.
आगे कि घटना जो कि उसने बाद मे फिर एकाद  माह  बाद   आने  पर सुनायी  जो की  ज्यादा मज़ेदार थी.
हुआ यू कि  उसके कुछ परिचितो ने उसे भय दूर करने   देशी दारू पिला दी .और भय दूर करने उसने भी और बॉटल अपने साथ गाव जाते वक्त  भी  रख ली अपने ग्राम कि और वापस लौटने हेतु उसनेसाथ  के लिए साथी तो  बहुत खोजा लेकिन कोई नही मिलने    पर देखा जायेगा सोच कर हिम्मत के साथ लोटने लगा .  .नाले के समीप आते ही उसका भय बढ गया .उसने थोड़ी दूर पहले  बॉट्ल खोल और थोड़ा लगा ली. अब नशे मे उसे  हिम्मत आ गया .अब बाघ क्या उसका बाप भी आ जाये देख लूंगा कि मुद्रा मे साइकल मे तेज़ी से  पैडल मार राम राम करते  नाला को पार कर लिया . नाले मे फिर से  बाघ को न देख वो बहुत खुश हुआ .और समीप ही पेशाब करने रुक  गया  . जैसे ही वो बैठा हि था  ,कि बाघ कि दहाड़ सुनाई पड़ी .तब तक कुछ कुछ  अंधेरा भी छाने लगा था.आचानक ही उसने दूर से  बाघ को अपनी ओर आते देखा .उसका सारा नशा हिरन हो गया .उसने आसपास छिपने कि जगह खोजी ,नही दिखने पर वो समीप के एक बड़े और घने  झाड़ मे चड़ने लगा .करीब 10,12 फीट ही वो चड़ पाया था कि बाघ नीचे खड़े होकर नीचे आ बे  ,तुझे  देखता  हु  कि मुद्रा मे दहाड़ने लगा .और ऊपर की और छलांग लगाने लगा .साथ हि पेड़ मे चढने कि कोशिस भी.इधर सरपंच डर की वजह से  और ऊपर चड़ने   लगा .जब वो पूर्ण सुरक्षा कि मुद्रा मे आ गया .निश्चिंत हो  पास रखे दारू पी कर  बॉटल बाघ को  भगाने  उसके ऊपर फेक दी .
अब बाघ और  भी बौखला गया .वो और जोर जोर से दहाड़ने और  गुस्से मे पेड़ के गोल चक्कर लगाने   लगा   फिर  उसे  भी  जाने  क्या सुझा साइकल के पास पहुच  साइकल के ऊपर अपना गुस्सा निकालने लगा .उसे  तहस -नहस कर दिया .
तब तक काफी समय गुजर चुका था .रात भी गहराने लगी थी.अंधेरे होने पर भी  बाघ वहा से हटने का नाम ही नही ले रहा था .ठन्ड बढ़ने लगी थी. सरपंच कि हालत पतली थी .लेकिन वो भी मज़बूर था। उसने अपनी पहनी हुयी धोती खोल कर  अपने आप  को झाड़ मे बांध लिया.
ताकि यदि नींद आ गयी तो नीचे न गिर पाये. और बॉटल से कुछ घुट पी कर देवी देवताओ से  तरह-तरह कि मनोती भी मान ली.लेकिन बाघ भी जिद्दी ठहरा  .वह़ा से वो  नही हटा,और नीचे बैठ  कर गुर्राने लग गया . काफी रात तक  यह खेल चला ,,
सुबह होते होते  नींद से जागकर सरपंच ने  नीचे कि और देखा तो बाघ दिखलाई नही दिया.अब उसने अपनी पोज़िशन देखी तो वो झाड़ मे डरकर इतना उपर तक आ गया था कि नीचे उतरना उसे असंभव लगने लगा .उसने चिल्लाने कि भी कोशिस कि तो गला रात के ठण्ड  से बैठ गया था कि गले से आवाज़ भी नही निकली . बुखार अलग चढ़ गया था .
रात को बाघ का दहाड़ सुनकर और सरपंच के वापस नही लौटने पर उसके परिजन और गाव वालो   का झुण्ड उसे खोजते आते दिखे .  गाव वाले साइकल कि हालत देख समझ लिये कि सरपंच को बाघ उठा कर  ले जाकर मर कर  खा  गया हैउनके परिवार के लोग रोने भी लगे .
और वो चूँकि सरपंच का गला बैठा हुआ था , .बोल नही पा रह़ा था तो अपनी धोती नीचे कि और फेक दी ,तब  जाकर  सबकी नज़र ऊपर उस पर पड़ी ,
फिर  ग्रामीणो ने उसे जैसे तैसे करके झाड़ से उतारा .

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