श्री रूद्रमहादेव की एक विलक्षण प्रतिमा तालागाव बिलासपुर छत्तीसगढ़
भारत की एकमात्र ज्ञात विलक्षण प्रतिमा
अभी कुछ दिनों पूर्व मै बिलासपुर से वापस रायपुर आ रहा था । .तो रास्ते मे लगभग 28 ,30 km.मे सरगाव नमक जगह से कुछ पहले तालागॉंव पुरातात्विक स्थल का बोर्ड लगा देखा जो की बाये और तीर के निशान से उस स्थल को चिन्हांकित कर रहा था । मै हमेशा वहां के एक पुरातात्विक उत्खनन के दौरान प्राप्त श्री रूद्रमहादेव की एक विलक्षण प्रतिमा प्राप्त होने की चर्चा सुनता रहता था । , जिसके प्रत्येक अंग में जलचर, नभचर व थलचर प्राणियों को दर्शाया गया है। जो की बीच चोरो के द्वारा ले भी जाया गया था ।.किन्तु वापस मिलने पर उसे वही फिर ला कर रख दिया गया है ।.
मैंने ड्राईवर को गाड़ी उसी दिशा मे मोड़ने कहा ,हम दगोरी तक धोखे मे पहुच गए थे ,फिर वापस आ कर मनियारी नदी किनारे स्थित उस जगह तक पहुचे ।.जगह मे स्टॉपडैम और नदी के किनारों को घाट और बगीचा के रूप मे विकसित किया गया है ।.यहाँ जलेश्वर शिव का भी मंदिर है। यदि रेल से आते है तो यह जगह रेलवे स्टेशन रायपुर एवं बिलासपुर के मध्य दगोरी रेलवे स्टेशन से लगभग पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर तालागांव मे स्थित है। जहाँ कैब या (स्वयं के वाहन ) से जाना ज्यादा ठीक है । इतिहासकार तालागांव को सातवीं-आठवीं सदी पुराना मानते हैं। वह दुर्लभ रूद्र शिवा की मूर्ती को एक कमरे मे अन्य खंडहरों के साथ लोहे के दरवाजे के मध्य बंद कर दिया गया है यह प्रतिमा सन 1987 -88 में देवरानी मंदिर में उत्खनन के दौरान प्राप्त हुई है । जो की भारत मे ज्ञात प्रतिमाओ मे प्रथम ही है । .
''रूद्र'' प्रतिरूप के भगवान शिव की यह प्रतिमा भगवान शिव के व्यक्तित्व के विभिन्न स्वरूपों की झलक दिखलाती है। ''शैव '' सम्प्रदाय के शिल्पियों द्वारा ,भगवान शिव इस यह अद्वितीय प्रतिमा में विभिन्न प्राणियों को तराशा गया है। जिनमे सरीसृप का प्रयोग बहुतायत से हुआ है। इस प्रतिमा में जीवन के क्रमिक विकास का दर्शन भी होता है।
भगवान शिव की यह प्रतिमा 2.5 मीटर ऊंची तथा 1 मीटर चौड़ी है। भगवान शिव की पगड़ी दो साँपों को मिलकर बानी हुयी है,जिनके फण भगवान के दोनों कन्धों पर स्थित हैं। कानों में मयूर सुशोभित हैं। नाक एक अवरोही छिपकली की तरह है। आँखों की भौंह मेंढक के खुले हुए मुंह या दहाड़ते हुए सिंह की तरह दिखाई पड़ती है। ऊपरी ओंठ एवं मुंछ दो मछलियों को मिलकर बनी हुयी है जबकि निचला ओंठ और ठुड्डी केंकड़े का रूप लिए हुए है। कन्धों पर मगमच्छ भी चित्रित है तथा दोनों हाथ मगरमच्छ के मुँह से बाहर निकलते हुए प्रतीत हो रहे हैं।शरीर के विभिन्न हिस्सों में सप्त मानव शीर्ष बने हुए हैं इनमें से मानव शीर्ष का एक जोड़ा छाती के दोनों ओर बना हुआ है जबकि एक बड़ा चेहरा पेट बनाया हुआ है,इन तीनों चेहरों में मूंछें बानी हुयी हैं दोनों जाँघों पर चेहरों के दो जोड़े खुदे हुए हैं जाँघों में सामने की तरफ दो हँसते हुए चेहरे तराशे गए हैं जबकि दो जाँघों के बाजुओं में बने हुए हैं। दोनों घुटनों में सिंह का शीर्ष बना हुआ है। जबकि कमर ,सांप की तरह अंकित है जबकि हाथों की अँगुलियों के नाख़ून सांप के मुंह की भांति तराशे गए हैं।
जहां तक पुरातात्विक पर्यटन की बात है तालागांव की यह मूर्ति अद्वितीय है। जो कि छत्तीसगढ़ का गौरव है।
मुझे देखने को मिला की यहा पर प्राप्त अन्य मुर्तिया चतुर्भुज मयूरासन कार्तिकेया दन्त को एक हाथ मे लिए गणेश ,उमामहेश ,नाग पुरुष ,शाल भंजिका आदि तथा बहुत से मुर्तिया खंडित तथा आसपास मे मंदिर गिरे हुए अवस्था मे है । मंदिर के आसपास पुराने चौड़े ईटो के ढेर भी बिखरे हुए दीखते है ,यानि की मंदिरे ईटो से भी निर्मित रहा हुआ होगा । इस जगह को लोग तंत्र साधना या अघोर पन्थियो का अनुष्ठान केंद्र भी मानते है जहा पर पशु बलि वध भी होता था ।
हमने वह चाय पीते हुए लोगो से चर्चा की तो लोगो ने बताया की पहले आसपास के लोग ही आते थे पर अब देशभर के कोने-कोने से लोग बारह माह यहाँ पर आते रहते हैं। पर्यटन स्थल के रूप में मान्यता मिलने से लोगों के लिए आसपास के क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। नवंबर- दिसंबर में तो. नेशनल हाइवे के पास भोजपुरी मोड़ के पास जो ताला से करीब दस किलोमीटर पर स्थित है यहाँ पिकनिक मनाने वालों की भीड़ लगातार उमड़ती रहती है। दो तीन बस मे तो लोग हमारे सामने भी बैठकर स्कूल के बच्चो को लेकर आये थे ।.साथ ही प्रेमियों का जोड़ा भी इस सुनसान जगह मे जाकर जगह का पूरा उपयोग करने मे लगे हुए थे । जिससे अप्रिय घटना वह पर होने से भी इंकार नही किया जा सकता है ।
इस जगह मे से जब ह्म रायपुर की और वापस हुए तो आने पर लगभग 85 km. की दुरी हमे पड़ी थी ।
अद्भुत जानकारी साझा करने क़े लिये धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंthanks sharad ji
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