बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

गंगा इमली Camachile (Pithecellobium dulce) से जुडी यादे
कुछ साल पहले  की बात है ,मै  सुबह के समय अपने क्वार्टर मे  बैठा काम कर रहा था .तभी  क्वार्टर मे पीछे  के दीवार के तरफ पत्थर  गिरने  की आवाज़ आयी .मैंने अपने भृत्य  को आवाज़ दी ,देखो क्या हो रहा है . कुछ देर बाद मुझे  उसके  किसी को डाटने डपटने की आवाज़  आयी .फिर उसने आकर  बताया की   क्वार्टर  के  पीछे बाउन्ड्री  मे एक गंगा इमली,और  बेर का पेड़ है . बच्चे पत्थर  फेक कर उसे तोड़ने की कोशिस मे लगे रहते है .

अच्छा पीछे  गंगा इमली का पेड़ है  क्वार्टर  के बाउन्ड्री की और  नाला  होने से सुनसान रहता था .क्वार्टर  के बाउन्ड्री की और  नाला  होने से सुनसान रहता था .साथ ही  उसी और पुलिस ने हमारे रहते एक महिला नक्सली को एनकाउंटर मे मरने पर ला कर चुपचाप मजिस्ट्रेट की उपस्थिती  मे जला दिया था ताकि कही  कोई उसका शहीद  स्मारक न बना देवे . इसलिये भी   उधर ह्म लोग नही जाते थे .
सुनसान  और झाडिया होने से  कभी अजगर तो कभी नेवला आदि घुस आते थे इस लिए सामान्यतः  पीछे के दरवाजे  ह्म लोग  ज्यादा नही  खोलते थे और न ही उधर जाते थे ,इसलिए मुझे इस पेड़ के बारे मे  पता नही था .
उसने धीरे से मुझसे पूछा   तोड़ ले क्या साहब ,मैंने  ठीक है बोल. फिर अपने काम मे लग गया .
 करीब आधे घंटे मे वह गंगा इमली को  लेकर आ गया जिसे देख मुझे अपने  बचपन की  याद  आ गई . हम लोग इसे लाल इमली भी कहते थे. . और जब छुट्टियों मे  गाव जाते थे तो   इस पेड़  मे लगे फल की जानकारी  दोस्तों से मिलते ही इसे तोड़ने भागते थे .  इसका एक ही पेड़ था वो भी   दूर  नाले किनारे बेर  पेड़ के साथ और आसपास में बाबुल के पेड़ भी बहुत थे .   पेड बहुत बड़े थे और कटीले भी. इस कारण  ऊपर चढ़ने में परेशानी होती थी.और जैसे  तैसे इसके आकर्षण से बंधे पैर मे  हाथ मे कांटे भले ही चुभ जावे  किन्तु जाकर  डंडों   से फल लगे  शाखाओ पर  प्रहार कर गिराते जाते  थे, और अंत मे  मिल बाँट कर  ले आते थे ,फल को देख पहले तो माता जी प्रसन्न होती फिर हाथ पैर मे  काटो के खरोच देख डांट भी देती और आगे  उधर जाने के लिए मनाही भी .
अभी जब यह लेख लिख रहा था  तो मुझे पता चला की  भारत में,इसे कही कही  जलेबी इमली भी कहा जाता है . तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश , मध्यप्रदेश और दिल्ली में पायी जाती है । इसे मीठी इमली, थाई-मीठी इमली, जंगल जलेबी, बंदर फली आदि नाम से भी जानी जाती है ।
जलेबी इमली फरवरी के मध्य से मई माह तक पेड़ों पर लगती है । अधिकांश जलेबी इमली के पेड़ सड़कों के किनारे, राजमार्ग पर और छोटे गावों के आसपास लगे  आपको  दिख जाऐंगें । जलेबी इमली अपरिपक्व हरे रंग की दिखतीहै । पकने के बाद फल लाल और गुलाबी हो जाते हैं । फल के अंदर का गूदा या तो सफेद या फिर लाल गुलाबी होजाता है । इसके अंदर काले रंग के बीज निकलते हैं जिन्हें खाते समय बाहर निकाल दिया जाता है । इसका  स्वाद मीठा, खट्टा और मिट्टी की जैसे  होता है .

 कहते है इसके गुदा (पल्प ) मे  पोषक तत्व प्रोटीन व विटामिन आदि काफी अधिक मात्र मे पायी जाती है .  जंगल जलेबी इमली अन्य देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका वेनेजुएला, ब्राजील, पेरू, गुयाना, कोलंबिया, मेक्सिको,जमैका, डोमिनिकन गणराज्य, हैती, गुआम, वर्जिन द्वीप समूह, डच एंटिल्स, क्यूबा, प्यूर्टो रिको, औरफ्लोरिडा और हवाई आदि में भी पाई जाती है और यह एशिया में, यह थाईलैंड, म्यांमार, मलेशिया, लाओस,चीन, फिलीपींस, इंडोनेशिया और भारत में  इसके पेड़ मिलते हैं ।
आज पुनः एक बार  में गंगा इमली देख कर मन प्रसन्न हो गया । .
फिलिप्पीन में न केवल इसे कच्चा ही खाया जाता है बल्कि   कई प्रकार के व्यजन बनाने में प्रयुक्त होता है.।
इस फल में प्रोटीन, वसा, कार्बोहैड्रेट, केल्शियम, फास्फोरस, लौह, थायामिन, रिबोफ्लेविन आदि तत्व भरपूर मात्र में पाए जाते हैं।. इसके पेड की छाल  के काढे से पेचिश का इलाज किया जाता है।.  त्वचा रोगों, मधुमेह और आँख के जलन में भी इसका इस्तेमाल होता है.। पत्तियों का रस दर्द निवारक का काम भी करती है और यौन संचारित रोगों में भी कारगर है . इसके पेड की लकड़ी का उपयोग इमारती लकड़ी की तरह ही किया जा सकता है।.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें