सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

 पातालकोट क्षेत्र 

पाताल में बसा एक ऐसा गांव, जहां सूरज की रोशनी नही पहुचती

देवेन्द्र कुमार शर्मा ११३,सुंदरनगर रायपुर छ.ग.
छिंदवाडा से दिल्ली के रोहिल्ला सराय स्टेशन तक जाने वाली ट्रेन “पातालकोट एक्सप्रेस’ का नामकरण इस क्षेत्र के नाम पर ही किया गया है |

पातालकोट क्षेत्र 

 आज मै आपको प्रकृति की गोद में बसे ऐसे अद्भुत गांव समूह के बारे में बता रहा हु, जिसके बारे में शायद ही आप जानते हों। आप पाताल के बारे में किस्सों में सुनते आए हैं। लेकिन क्या आपने कभी वास्तविक जीवन में पाताल देखा है? नहीं न, तो यह जानकर आपको खुशी होगी कि हमारे ही देश में एक ऐसा स्थान है, जो पाताल का दूसरा रूप है। उस अद्भुत जगह का नाम  है -  पातालकोट 

मै वर्ष 1999मे परिवार सहित निजी वाहन से जून के माह मे पंचमढ़ी जा रहा था।
सिवनी ,के आगे रात होने लगी थी,. छोटे बच्चे भी साथ मे थे । अतः विचार किया गया की. छिंदवाडा रात रूककर वहां से सुबेरे मे पंचमढ़ी के लिए निकला जावे।
जिस होटल मे ह्म लोग रुके थे वहां के लोगो से आगे और देखने के लायक जगह की जानकारी ली तो पातालकोट और तामिया की जानकारी मिली ।.
छिंदवाडा से चलकर लगभग 09 बजे तामिया से 5-7 km पहले तक  पहुंचे हि थे । यहां पर पातालकोट व्यू पॉइण्ट जाने का रास्ता मे लगा हुआ बोर्ड लगा दिखा ।.जो की यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर है। यहीं से पातालकोट का रास्ता अलग होता है।
रास्ता के दोनों और के नज़ारे सुन्दर है। ऊंची-नीची जमीन है । ह्म किलोमीटर के पत्थर देखते हुए हम आगे बढते जा रहे थे।एक जगह तिराहा मिला, यहां बोर्ड लगा था कि पातालकोट (रातेड) व्यू पॉइण्ट के लिये बायें जायें और चिमटीपुर व्यू पॉइण्ट के लिये सीधे जायें। हम बाये मुड़ पड़े। दो किलोमीटर बढ़ते ही सडक घास के एक मैदान में समाप्त हो गई। यहां एक वाच टावर बना था ताकि लोगबाग पातालकोट को निहार सकें।
ह्म स्वयं भी रेलिंग के सहारे सामने देखते हुये आश्चर्य चकित थे ।
यहां से आगे का नज़ारा बिल्कुल पाताल लोक जैसा ही था। सीधी खडी गहराई।
और उसके अन्दर फिर उतनी ही गहराई मे बसे लोग .इसका पातालकोट नाम इसी गहराई की वजह से पडा है । बिल्कुल पाताल लोक जैसे हजारो फीट की गहराई। पाताल अर्थात अनन्त गहराई वाला स्थान। यहाँ कोट का अर्थ है- चट्टानी दीवारों, दीवारे भी इतनी ऊँची, कि यदि आप पहाडी की तलहटी में खड़े हैं, तो लगता है जैसे आप पहाड़ से घिर गए हैं। सिर्फ उचे उचे पहाड़ ही नज़र आयेंगे .
मानो धरती के गर्भ में समाया है। तकरीबन 89 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली यह एक घाटी है जो सदियों तक बाहरी दुनिया के लिए अनजान और अछूती बनी रही।

प्रकृति की गोद में बसा यह पाताललोक सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच 3000 फुट ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से तीन ओर से घिरा हुआ है। इस स्थान पर दो-तीन गांव तो ऐसे हैं जहां आज भी जाना नामुमकिन है। ऐसा माना जाता है कि इन गांवों में कभी सवेरा नहीं होता। जमीन से काफी नीचे होने और विशाल पहाड़ियों से घिरे होने के कारण इसके कई हिस्सों में सूरज की रौशनी भी देर से और कम पहुँचती है,मानसून में बादल पूरी घाटी को ढक लेते हैं और बादल यहाँ तैरते हुए नजर आते हैं। इन सब को देख सुन कर लगता है कि मानो धरती के भीतर बसी यह एक अलग ही दुनिया हो।
 सतपुड़ा की पहाड़ियों में करीब 1700 फुट नीचे बसे ये गावं भले ही तिलिस्म का एहसास कराते हों लेकिन यहाँ बसने वाले लोग हम और आपकी तरह हांड-मांस के इंसान ही हैं, यह लोग भारिया और गौंड आदिवासी समुदाय के हैं जो अभी भी हमारे पुरखों की तरह अपने आप को पूरी तरह से प्रकृति से जोड़े हुए हैं सूर्य की रोशनी यदि पहुचती भी है तो कुछ देर के लिए ही।.
पैराणिक कथाओं के अनुसार यह वही स्थान है, जहां से मेघनाथ, भगवान शिव की आराधना कर पाताल लोक में गया था।
यही नहीं, यहां के स्थानीय लोग आज भी शहर की चकाचौंध से दूर हैं। उन्हें तो पूरी तरह से यह भी नहीं मालूम की शहर जैसी कोई भी चीज भी है। औरचारो तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ लेकिन नीचे में लोग रहते भी हैं और गांव भी हैं। खूब घना जंगल है और आना-जाना पैदल ही होता है।


स्थानीय आदिवासी उस जगह पर जडी-बूटियां और स्थानीय पैदावार बेच रहे थे। एक तो यह इलाका ही बेहद दुर्गम है, फिर पातालकोट- यहां कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है। आदिवासी स्वयं ही अपना उपचार करते हैं और कुदरत ने इनके जंगल में खूब जडी-बूटियां उगा रखी हैं। ये लोग इनका प्रयोग करना जानते हैं।
उनसे बातचीत मे पता चला की पातालकोट में 12 गाँव अन्दर समाये हुए हैं।  .एक गाँव में 4-5 अथवा सात-आठ से ज्यादा घर नहीं होते। पातालकोट में 12 गांव समाये हुए हैं ये गांव हैं- गैलडुब्बा, कारेआम, रातेड़, घटलिंगा-गुढ़ीछत्री, घाना कोड़िया, चिमटीपुर, जड़-मांदल, घर्राकछार, खमारपुर, शेरपंचगेल, सुखाभंड-हरमुहुभंजलाम और मालती-डोमिनी।
  सभी गाँव के नाम इनके  संस्कृति से जुड़े-बसे हैं। भारियाओ के शबदकोष में इनके अर्थ धरातलीय संरचना, सामाजिक प्रतिष्ठा, उत्पादन विशिष्टता इत्यादि के अनुसार  समेटे हुए नाम  है।

पातालकोट के दर्शनीय स्थल में, रातेड, कारेआम, नचमटीपुर, दूधी तथा गायनी नदी का उद्गम स्थल और राजाखोह प्रमुख है। आम के झुरमुट, यह आने वालो  का मन मोह लेते हैं। आम के झुरमुट में शोर मचाता- कलकल के स्वर निनादित कर बहता सुन्दर सा झरना, कारेआम का खास आकर्षण है।
यहां रुकने का एकमात्र स्थान जंगल वालों का रेस्ट हाउस है और वो बिल्कुल पहाड़ के खडे किनारे पर बना है। वही असल में चिमटीपुर व्यू पॉइण्ट है जिसके बारे में पीछे बोर्ड पर लिखा था।

रेस्ट हाउस से तीन किलोमीटर पीछे ग्राम छिन्दी के पास फॉरेस्ट रेंज ऑफिस है। इसकी बुकिंग केवल वहीं से होती है

2 टिप्‍पणियां: