छत्तीसगढ़ के राजननंदगांव में जन्मे किशोरसाहू ने फिल्मों में छत्तीसगढ़ की भाषा को भी पूरा सम्मान दिया।
देवेन्द्र कुमार शर्मा ११३,सुंदरनगर रायपुर छ.ग.
छत्तीसगढ़ी बोलते सुनायी पड़े थे पात्र पहली बार फिल्म के पर्दे पर दिलीप कुमार एवं कामिनी कौशल द्वारा अभिनीत फिल्म 'नदिया के पार' में साथ ही दिलीपकुमार राजकुमार कोलेज रायपुर से पढ कर निकलते भी दिखाए गए थे
इस बात को बहुत ही कम लोग जानते है कि 'गाइड' जैसी महान फिल्म में एक्ट्रेस वहीदा रहमान के पति मार्को की भूमिका निभाने वाले तथा बाज़ी ,हरे रामा हरे कृष्णा मे किरदारनिभाने वालेकिशोर साहू हमारे अपने छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे।
वे न सिर्फ बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि सिद्धहस्त डायरेक्टर और ख्यातिप्राप्त लेखक भी थे। फिल्म 'गाइड' में उनके सशक्त अभिनय को भला कैसे भूला जा सकता है।किशोर साहू ने फिल्मों में हिंदी को हमेशा महत्व दिया, लेकिन जिस छत्तीसगढ़ में वो पैदा हुए और पले बढ़े वहां की भाषा को भी पूरा सम्मान दिया।
22 अक्टूबर 1915 को छत्तीसगढ़ के राजननंद गांव में जन्मे किशोर ने स्कूल के ज़माने से ही नाटकों का साथ पकड़ लिया। नाटकों की दुनिया में प्रवेश लेने के बाद उन्हें लगता था कि वे अभिनय करने के लिये ही पैदा हुए थे।
स्कूली दिनों से ही किशोर साहू कहानियां लिखने लगे। नागपुर में उहोंने ना सिर्फ नाटकों में अभिनय किया बल्कि नाटक लिखे भी। इस बीच सुंदर और प्रभावशाली साहू को उनके दोस्तों ने राय दी कि वो मुंबई जाकर फ़िल्मों में भाग्य आज़माएं। उन्होंने मुंबई का रूख़ किया। दूसरे बहुत से लोगों की तरह साहू को भी काम ढूंढने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा।
संघर्ष के दौर ने ही उनकी मुलाक़ात अशोक कुमार से करवायी। साहित्य में रूचि और अभिनय की बारीकियों पर साहू की बेबाक बातों ने अशोक कुमार को काफ़ी प्रभावित किया। किशोर साहू की लेखन की प्रतिभा ने उन्हें फ़िल्मी दुनिया में अपनी जगह मज़बूत करने में बहुत मदद की।
अशोक कुमार की सिफ़रिश पर बॉम्बे टाकीज़ के मालिक हिमांशु राय साहू से मिलने पर राजी हो गए और इस मुलाकात के बाद साहू की किस्मत बदल गयी।हिमांशु राय की पत्नी देविका रानीके साथ बाग़ में गाने गाए और शिकार के एक दृश्य में मचान पर चढ़ कर शेर भी मारा।
हिंमांशु राय ने साहू को अपनी फ़िल्म जीवन प्रभात (1938) में हीरो का रोल दे दिया। साहू की नायिका थीं हिमांशु राय की पत्नी देविका रानी। किशोर साहू की पहली ही फ़िल्म हिट हो गयी। लेखक के रूप में उनके तीन कहानी संग्रह टेसू के फूल, छलावा और घोंसला हिंद पॉकेट बुक से प्रकाशित हुए उन्होंने चार उन्यास भी लिखे। ।
हेलमेट', 'कालीघटा', 'साजन', 'सिंदूर' और 'वीर कुणाल' सहित किशोर साहू ने करीब 22 फिल्मों का निर्देशन किया। प्रथम उप-प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री सरदार बल्ल्भभाई पटेल ने मुंबई में वीर कुणाल को रिलीज़ करते हुए इसे श्रेष्ठ फिल्म घोषित किया था।
किशोर साहू ने अपनी बेटी नयना को लेकर भी फिल्म 'हरे कांच की चूड़ियां' ( 1967) बनाई, लेकिन तब तक उनके समय के फिल्मकार हाशिये पर पहुंचते जा रहे थे।
22 अक्टूबर 1915 को छत्तीसगढ़ के राजननंद गांव में जन्मे किशोर ने स्कूल के ज़माने से ही नाटकों का साथ पकड़ लिया। नाटकों की दुनिया में प्रवेश लेने के बाद उन्हें लगता था कि वे अभिनय करने के लिये ही पैदा हुए थे।
स्कूली दिनों से ही किशोर साहू कहानियां लिखने लगे। नागपुर में उहोंने ना सिर्फ नाटकों में अभिनय किया बल्कि नाटक लिखे भी। इस बीच सुंदर और प्रभावशाली साहू को उनके दोस्तों ने राय दी कि वो मुंबई जाकर फ़िल्मों में भाग्य आज़माएं। उन्होंने मुंबई का रूख़ किया। दूसरे बहुत से लोगों की तरह साहू को भी काम ढूंढने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा।
संघर्ष के दौर ने ही उनकी मुलाक़ात अशोक कुमार से करवायी। साहित्य में रूचि और अभिनय की बारीकियों पर साहू की बेबाक बातों ने अशोक कुमार को काफ़ी प्रभावित किया। किशोर साहू की लेखन की प्रतिभा ने उन्हें फ़िल्मी दुनिया में अपनी जगह मज़बूत करने में बहुत मदद की।
अशोक कुमार की सिफ़रिश पर बॉम्बे टाकीज़ के मालिक हिमांशु राय साहू से मिलने पर राजी हो गए और इस मुलाकात के बाद साहू की किस्मत बदल गयी।हिमांशु राय की पत्नी देविका रानीके साथ बाग़ में गाने गाए और शिकार के एक दृश्य में मचान पर चढ़ कर शेर भी मारा।
हिंमांशु राय ने साहू को अपनी फ़िल्म जीवन प्रभात (1938) में हीरो का रोल दे दिया। साहू की नायिका थीं हिमांशु राय की पत्नी देविका रानी। किशोर साहू की पहली ही फ़िल्म हिट हो गयी। लेखक के रूप में उनके तीन कहानी संग्रह टेसू के फूल, छलावा और घोंसला हिंद पॉकेट बुक से प्रकाशित हुए उन्होंने चार उन्यास भी लिखे। ।
हेलमेट', 'कालीघटा', 'साजन', 'सिंदूर' और 'वीर कुणाल' सहित किशोर साहू ने करीब 22 फिल्मों का निर्देशन किया। प्रथम उप-प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री सरदार बल्ल्भभाई पटेल ने मुंबई में वीर कुणाल को रिलीज़ करते हुए इसे श्रेष्ठ फिल्म घोषित किया था।
किशोर साहू ने अपनी बेटी नयना को लेकर भी फिल्म 'हरे कांच की चूड़ियां' ( 1967) बनाई, लेकिन तब तक उनके समय के फिल्मकार हाशिये पर पहुंचते जा रहे थे।
उनकी कहानियों की एक वड़ी विशेषता ये है कि वो जब तक पूरी नही हो जातीं अपना भेद प्रकट नहीं होने देतीं। सादा और दिलचस्प तर्जे बयां, आम बोलचाल की भाषा और मनवीय संवेदना किशोर साहू के लेखन की खासियत है।
उनके नाटकों का संग्रह शादी या ढकोसला है इसके अलावा उनके गद्य गीतों का भी एक संग्रह है। किशोर की लेखन प्रतिभा को देखते हुए अपने समय की सबसे चर्चित फिल्म पत्रिका फिल्म इंडिया के संपादक बाबू राव पटेल ने किशोर साहू को आचार्य किशोर साहू लिखना शुरू किया था।
उनके नाटकों का संग्रह शादी या ढकोसला है इसके अलावा उनके गद्य गीतों का भी एक संग्रह है। किशोर की लेखन प्रतिभा को देखते हुए अपने समय की सबसे चर्चित फिल्म पत्रिका फिल्म इंडिया के संपादक बाबू राव पटेल ने किशोर साहू को आचार्य किशोर साहू लिखना शुरू किया था।
वाह ,
जवाब देंहटाएंराजीव kalra
वाह ,
जवाब देंहटाएंराजीव kalra
गाइड मेरी मनपसन्द मूवी है ,बहुत बार देखी है और देखी जा सकती है ,किशोर साहू के बारे में इतनी अच्छी रोचक जानकारी पढ़वाने के लिए धन्यवाद
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