शनिवार, 17 सितंबर 2016

इसीलिए तो ऐसे कार्यालय मे बलि का बकरा मातहत ही बनता है ?


कार्यालय प्रमुख/विभाग प्रमुख के कार्य करना बहुत ही आसान है भारत मे आप पूछेंगे ऐसा क्यू ? मैंने अपने शासकीय सेवा क़ाल मे पाया की कार्यालय प्रमुख की हैसियत से कार्य करना ज्यादा आसान है ,अधिकारी के पद मे रहते हुये ,बनिस्पत मातहत कर्मचारी के रूप मे काम करना .पहला निर्णय तो आधिकारी को वही लेना है, जो ऊपर के निर्देश होते है , यानि की सिस्टम से बाहर तो जा ही नही सकते है किन्तु यही पर कुछ बाते ऐसी भी होती है की आधिकारी क्या करू ,न करू सोचते हुए उहापोह मे पड़े रहकर फाइल को लटकाए रखता है .या बहुत से आधिकारी मैंने ऐसे भी देखे है. जिनमे निर्णय लेने की क्षमता ही नहीं है. खुद निर्णय लेना उनके लिए कठिन है . ऐसे लोग सामान्यतः कार्यालय के बड़े बाबु या मुहलगे अन्य किसी अधिकारी / कर्मचारी पर आश्रित होते है .मेरी जानकारी मे ऐसे ही एक आधिकारी को उसके मातहत बड़े बाबू ने समझाया सर फाइल आपके पास अटकने से असंतोष फैलता है , आप ऐसा किया करे फाइल भेजने वालो को चर्चा हेतु लिखकर लौटा दिया करे .जब वो आधिकारी आये तो उससे अच्छे बुरे सभी पहलुओं पर चर्चा कर लीजिये और फिर फाइल. मे लिखिए ,श्री ,,,,,, उपस्थित ,चर्चा अनुसार (as discussed )और फाइल लौटा देवे .आपको क्या आपने तो जो भी निर्णय लिया है , अपने मातहत से उसके द्वारा बताने अनुसार लिया है. आपको क्या करना है कोई बात हुई तो फिर मातहत तो है हि न , की उसने आपको गलत जानकारी देकर भ्रमित किया . और उस आधिकारी को उनके पुरे कार्यकाल मे हर फ़ाइल पर ''Please Discuss'' रिमार्क डालते ही पाया इसीलिए तो ऐसे कार्यालय मे बलि का बकरा मातहत ही बनता है

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