सोमवार, 7 नवंबर 2016

    ड्यूटी को सलाम " गार्ड " मालगाड़ी का "  

    मै  अभी हाल में  शहर दुर्ग से शाम को रायपुर वापस आ रहा था .रास्ते में पॉवर हाउस भिलाईमें रेलवे क्रासिंग का गेट बंद था ,कोई ट्रेन आने वाली थी . लीजिये ये क्या ये तो माल गाडी है ,मतलब ज्यादा समय गेट खुलने में लगेगा .बाप रे बाप इतना लम्बा खटर खटर ख़टा ख़ट पटर पट ख़टा खट एक ,दो ,दस ,धड धड धड पचास ,साठ और फिर चली आई मेरे सामने माल गाडी का आखिरी डिब्बा घुप अंधेरा, शरीर को झकझोर देने वाले जबर्दस्त झटके, बैठने के लिए लोहे की कुर्सी, पीने का पानी नहीं और न ही वाशरूम के हालात होते हैं ऐसे लोहे से बना ब डिब्बे में कैद लाल हरी झंडी पकडे निर्धारित ड्रेस में गार्ड .रात अँधेरे हो जाता तो शायद लालटेन उसके हाथ में होती.
    इतनी लम्बी गाड़ी के आखिरी डिब्बे में चुपचाप बैठा दिखता है, एक बिल्कुल निपट अकेला आदमी। सफ़र कैसे कटता होगा इस बिचारे का और सफ़र भी ऐसा कि पता नही,कहां घंटों खड़ा रहना है और कब तक घना जंगल की अँधेरी सुनसान जगह या फिर ऐसे स्टेशनों पर, जहां ना कोई जनजीवन ना हि कोई दुकान। अंतिम किनारा किसी भी प्लेटफार्म का .
    मैंने सोचा की मालगाड़ी के इस डिब्बे में पता नहीं क्यों, रेलवे ने रोशनी का इंतज़ाम भी नही कर रखा है। आवश्यक सुख सुविधा का भी इंतजाम नही .अपनी दाना पानी का इंतजाम खुद हि करके चलना है .आचानक हि यदि पेट बुरी तरह ख़राब हो गया तो आप आगे तो सोचो हि मत इस बात पर,
    क्युकी पानी व अन्य व्यवस्था सिमीत है .
    लोग रेलवे की नौकरी को एक अच्छी नौकरी की श्रेणी में लेते है किन्तु ये क्या सच मानिये,कभी मालगाड़ी के गार्ड की ज़िन्दगी को कल्पना कर के देखें,आपका मन अवश्य विचलित होगा।मैं तो जब भी कोई मालगाड़ी देखता हूं तो मेरा सर श्रद्धा से उस गाड़ी के गार्ड के कार्य के प्रति झुक जाता है।
     हाथ में लाल-हरा झंडा थामे किसी महिला को ड्यूटी करते शायद ही पहले कभी किसी ने देखा हो, लेकिन अब आपको भी दिख जायेगा ये  महिला गार्ड भी , जो लड़कों की तरह मालगाड़ी के आखिरी डिब्बे में 12 से 14 घंटों की ड्यूटी अकेली कर रही हैं।



    मौसम कैसा भी हो, तेज़ गर्मी कड़कती सर्दी या घोर बारिश,बस अंधेरे में उस में अकेले लोहे के केबिन में कटती ज़िन्दगी। बगल से एक से एक रंग-बिरंगी गाड़ियां यथा शताब्दी,दुरंतो,राजधानी धड़ाधड़ गुजरती हुई, जैसे मुंह चिढ़ाती तेज़ जिन्दगी भाग रही हो और मालगाड़ी धीरे धीरे चुपचाप सी रेंगती हुई,
    आजकल तो मोबाइल और वाकी टाकी का ज़माना आ गया ,आज से १०/१५ वर्ष पहले तो गार्ड साहब घर से जाने के बाद, कब लौटेंगे, उन्हें या उनके घर वालो को भी खुद भी पता नही होता था।
    रास्ते में अपहरण हो गया ,डाकू के लूट के शिकार हो गये ,आमने सामने जंगल के वन्य प्राणी नज़र से नज़र मिला रहे है . लेकिन जिम्मेदारी निभाते बिचारे गार्ड सच मानिये,कभी मालगाड़ी के गार्ड की ज़िन्दगी को कल्पना कर के देखें,मन अवश्य विचलित होगा।मैं तो जब भी कोई मालगाड़ी देखता हूं तो मेरा सर श्रद्धा से उस गाड़ी के गार्ड के प्रति झुक जाता है।सलाम है इनकी कार्य को .


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    Dk Sharma

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6 टिप्‍पणियां:

  1. शर्मा जी....बढ़िया पोस्ट...

    सच में आपकी पोस्ट पढने के बाद अनुभव किया की ट्रेन के अंतिम छोर पर गार्ड के डिब्बे में अपनी ड्यूटी पर तैनात गार्ड की क्या हालत होती होगी....

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  2. यह वास्तविकता है जिसे अापने महसूस किया। अपने काम के प्रति समर्पित लोगों को सम्मान दिया जाना चाहिए।

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  3. बहुत बढ़िया जानकारी दी शर्मा जी आपने हम में से तो कई लोगो को मालगाड़ी का कभी ख्याल भी नही आया होगा बहुत अच्छी पोस्ट है

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  4. बहुत बढ़िया जानकारी दी शर्मा जी आपने हम में से तो कई लोगो को मालगाड़ी का कभी ख्याल भी नही आया होगा बहुत अच्छी पोस्ट है

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  5. धन्यवाद आप सभी का इंजन ड्राईवर का भी हॉल इससे बुरा होता है उनकि जिन्दगी पर भी भविष्य में लिखूंगा .आभार

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  6. बहुत बढिया जानकारी और भी विस्तार से लिखिये।

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