टांगीनाथ धाम –(Tanginath Dham Gumla)
भगवान परशुराम का फरसा देखना है तो यहां जाएंयहाँ पर आज भी है भगवान परशुराम का फरसा,
जी हा झारखंड राज्य मे गुमला शहर से करीब 75 km दूर तथा रांची से करीब 150 km दूर घने जंगलों के बीच स्थित है। इस जगह का पश्चिम भाग छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिला व सरगुजा से सटा हुआ है। वहीं उत्तरी भाग पलामू जिले व नेतरहाट की तराई से घिरा हुआ है। छोटानागपुर के पठार का यह उच्चतम भाग है, जो सखुवा के हरे भरे वनों से आच्छादित है ।.यह जगह अब अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र मे आती है।
इसजगह का परशुराम से गहरा नाता है। यहाँ पर आज भी भगवान परशुराम का फरसा ज़मीं मे गड़ा हुए है। ऐसी लोक मान्यता है। झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया। धाम में आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं।
परशुराम ने यहाँ पर कि थी घोर तपस्या :
टांगीनाथ धाम मे भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने तपस्या कि थी। परशुराम टांगीनाथ कैसे पहुचे इसकी कथा इस प्रकार है। जब राम, राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर मे भगवान शिव का धनुष तोड़ देते है तो परशुराम बहुत क्रोधित होते हुए वहा पहुँचते है और राम को शिव का धनुष तोड़ने के लिए भला – बुरा कहते है। सब कुछ सुनकर भी राम मौन रहते है, यह देख कर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वो परशुराम से बहस करने लग जाते है। इसी बहस के दौरान जब परशुराम को यह ज्ञात होता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार है तो वो बहुत लज्जित होते है और वहाँ से निकलकर पश्चाताप करने के लिये घने जंगलों के बीच आ जाते है। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर और बगल मे अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करते है। यहीं जगह आज का टांगीनाथ धाम है।
टांगीनाथ धाम में स्थित एक छोटा प्राचीन मंदिर
यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे कि एक विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है। और दूसरी विशेषता यह है कि ये जमीन मे कितना नीचे तक गड़ा है इसकी भी कोइ जानकारी नही है। एक अनुमान 17 फ़ीट का बताया जाता है। सबसे आश्चर्य की बात कि इसमें कभी जंग नहीं लगता। खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात, ठंड का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है। अपने इसी चमत्कार के कारण यह विश्वविख्यात है।
टांगीनाथ धाम मे भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने तपस्या कि थी। परशुराम टांगीनाथ कैसे पहुचे इसकी कथा इस प्रकार है। जब राम, राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर मे भगवान शिव का धनुष तोड़ देते है तो परशुराम बहुत क्रोधित होते हुए वहा पहुँचते है और राम को शिव का धनुष तोड़ने के लिए भला – बुरा कहते है। सब कुछ सुनकर भी राम मौन रहते है, यह देख कर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वो परशुराम से बहस करने लग जाते है। इसी बहस के दौरान जब परशुराम को यह ज्ञात होता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार है तो वो बहुत लज्जित होते है और वहाँ से निकलकर पश्चाताप करने के लिये घने जंगलों के बीच आ जाते है। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर और बगल मे अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करते है। यहीं जगह आज का टांगीनाथ धाम है।
टांगीनाथ धाम में स्थित एक छोटा प्राचीन मंदिर
यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे कि एक विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है। और दूसरी विशेषता यह है कि ये जमीन मे कितना नीचे तक गड़ा है इसकी भी कोइ जानकारी नही है। एक अनुमान 17 फ़ीट का बताया जाता है। सबसे आश्चर्य की बात कि इसमें कभी जंग नहीं लगता। खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात, ठंड का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है। अपने इसी चमत्कार के कारण यह विश्वविख्यात है।
टांगीनाथ धाम में पड़ा टूटा हुआ शिखर
फरसे से जुडी किवदंती :
कहा जाता है कि एक बार क्षेत्र मे रहने वाली लोहार जाति के कुछ लोगो ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने प्रयास किया था। वो लोग फरसे को तो नही काट पाये पर उनकी जाति के लोगो को इस दुस्साहस कि कीमत चुकानी पड़ी और वो अपने आप मरने लगे। इससे डर के लोहार जाति ने वो क्षेत्र छोड़ दिया और आज भी धाम से 15 km की परिधि में लोहार जाति के लोग नही बसते है।
टांगीनाथ धाम में खंडित मूर्ति
शिवजी से भी जोड़ा जाता है टांगीनाथ का सम्बन्ध :
कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हुए इसका सम्बन्ध शिवजी से जोड़ते है। इसके लिए वो पुराणों कि एक कथा का उल्लेख करते है जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते है। गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार करते है। शनि देव त्रिशूल के प्रहार से किसी तरह अपने आप को बचा लेते है। शिवजी का फेका हुआ त्रिशुल एक पर्वत को चोटी पर जा कर धस जाता है। वह धसा हुआ त्रिशुल आज भी यथावत वही पडा है। चुकी टांगीनाथ धाम मे गडे हुए फरसे की उपरी आकर्ति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती है इसलिए शिव जी का त्रिशुल भी मानते है।
ऐतिहासिक और पुरातात्विक सम्पदा से परिपूर्ण है टांगीनाथ धाम :
हम अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों के प्रति कितने लापरवाह है, टांगीनाथ धाम इसका एक जीता – जागता उदाहरण है। यहाँ पर सैकड़ों की संख्या मे प्राचीन शिवलिंग और मूर्तियां बिखरी पड़ी है लेकिन उनके रख रखाव और सुरक्षा का यहा कोइ प्रबन्ध नही है। इनकी ऐसी स्तिथि देखकर यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि अब तक कितनी पुरासम्पदा गलत हाथोँ मे जा चुकि होगी। टांगीनाथ में स्थित प्रतिमाएं उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर व गौरी केदार में प्राप्त प्रतिमाओं से मेल खाती है।
टांगीनाथ धाम में यहा वहा बिखरी पडी मुर्तिया और शिवलिंग , एक कतार मे बने शिवलिंग
टांगीनाथ धाम मे हुई थी खुदाई, निकले थे सोने और चांदी के आभूषण :
1989 में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम मे खुदाई कि थी। खुदाई में उन्हें सोने चांदी के आभूषण सहित अनेक मूल्यवान वस्तुए मिली थी। लेकिन कुछ कारणों से यहां पर खुदाई बन्द कर दि गई और फिर कभी यहां पर खुदाई नही कि गई। खुदाई में हीरा जडि़त मुकुट, चांदी का अर्धगोलाकार सिक्का, सोने का कड़ा, कान की सोने की बाली, तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था, आदि चीजें मिलीं थीं। यह सब चीज़े आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखी हुई है।
फरसे से जुडी किवदंती :
कहा जाता है कि एक बार क्षेत्र मे रहने वाली लोहार जाति के कुछ लोगो ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने प्रयास किया था। वो लोग फरसे को तो नही काट पाये पर उनकी जाति के लोगो को इस दुस्साहस कि कीमत चुकानी पड़ी और वो अपने आप मरने लगे। इससे डर के लोहार जाति ने वो क्षेत्र छोड़ दिया और आज भी धाम से 15 km की परिधि में लोहार जाति के लोग नही बसते है।
टांगीनाथ धाम में खंडित मूर्ति
शिवजी से भी जोड़ा जाता है टांगीनाथ का सम्बन्ध :
कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हुए इसका सम्बन्ध शिवजी से जोड़ते है। इसके लिए वो पुराणों कि एक कथा का उल्लेख करते है जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते है। गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार करते है। शनि देव त्रिशूल के प्रहार से किसी तरह अपने आप को बचा लेते है। शिवजी का फेका हुआ त्रिशुल एक पर्वत को चोटी पर जा कर धस जाता है। वह धसा हुआ त्रिशुल आज भी यथावत वही पडा है। चुकी टांगीनाथ धाम मे गडे हुए फरसे की उपरी आकर्ति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती है इसलिए शिव जी का त्रिशुल भी मानते है।
ऐतिहासिक और पुरातात्विक सम्पदा से परिपूर्ण है टांगीनाथ धाम :
हम अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों के प्रति कितने लापरवाह है, टांगीनाथ धाम इसका एक जीता – जागता उदाहरण है। यहाँ पर सैकड़ों की संख्या मे प्राचीन शिवलिंग और मूर्तियां बिखरी पड़ी है लेकिन उनके रख रखाव और सुरक्षा का यहा कोइ प्रबन्ध नही है। इनकी ऐसी स्तिथि देखकर यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि अब तक कितनी पुरासम्पदा गलत हाथोँ मे जा चुकि होगी। टांगीनाथ में स्थित प्रतिमाएं उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर व गौरी केदार में प्राप्त प्रतिमाओं से मेल खाती है।
टांगीनाथ धाम में यहा वहा बिखरी पडी मुर्तिया और शिवलिंग , एक कतार मे बने शिवलिंग
टांगीनाथ धाम मे हुई थी खुदाई, निकले थे सोने और चांदी के आभूषण :
1989 में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम मे खुदाई कि थी। खुदाई में उन्हें सोने चांदी के आभूषण सहित अनेक मूल्यवान वस्तुए मिली थी। लेकिन कुछ कारणों से यहां पर खुदाई बन्द कर दि गई और फिर कभी यहां पर खुदाई नही कि गई। खुदाई में हीरा जडि़त मुकुट, चांदी का अर्धगोलाकार सिक्का, सोने का कड़ा, कान की सोने की बाली, तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था, आदि चीजें मिलीं थीं। यह सब चीज़े आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखी हुई है।
अब संदेह में डालने वाली और आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि जब वहा से इतनी बहुमूल्य चीजें मिल रही थी तो आखिर क्यों वहा पर ख़ुदाई बन्द कर दि गई ? हो सकता है कि वहा पर और खुदाई कि जाती या आज भी कि जाये तो हमे टांगीनाथ के बारे मे कुछ नई जानकारी प्राप्त हो सके।
टांगीनाथ धामों में यत्र तत्र सैकंडों की संख्या में शिवलिंग है। बताया जाता है कि यह मंदिर शाश्वत है। स्वयं विश्वकर्मा भगवान ने टांगीनाथ धाम की रचना की थी। वर्तमान में यह खंडहर में तब्दील हो गया है। यहां की बनावट, शिवलिंग व अन्य स्रोतों को देखने से ऐसा लगता भी है कि इसे आम आदमी नहीं बना सकता है।
टांगीनाथ धाम में खुदाई मे निकली हुई चीज़े जो कि अभी मालखाने मे पडी है
कभी रहा था हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल :
टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र मे फैले हुए अनगिनत अवशेष यह बताने के लिए काफी है कि यह क्षेत्र किसी जमाने मे हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा होगा लेकिन किसी अज्ञात कारन से यह क्षेत्र खंडहर मे तब्दील हो गया और भक्तों का यहां पहुचना कम हो गया। रही सही कमी वर्तमान समय मे सरकारी उपेक्षा और नक्सलवाद ने कर दि। टांगीनाथ धाम में विश्रामागार नहीं है। लाइट की व्यवस्था, चलने लायक सड़क नहीं है।"
कभी रहा था हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल :
टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र मे फैले हुए अनगिनत अवशेष यह बताने के लिए काफी है कि यह क्षेत्र किसी जमाने मे हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा होगा लेकिन किसी अज्ञात कारन से यह क्षेत्र खंडहर मे तब्दील हो गया और भक्तों का यहां पहुचना कम हो गया। रही सही कमी वर्तमान समय मे सरकारी उपेक्षा और नक्सलवाद ने कर दि। टांगीनाथ धाम में विश्रामागार नहीं है। लाइट की व्यवस्था, चलने लायक सड़क नहीं है।"
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