बुधवार, 24 मई 2017

 पुरी रात को  लगनेवाली  रात्रिकालीन  बाजार -बेलगहना छत्तीसगढ़ (BELGAHNA chattisgadh)

सतपुड़ा मैकल पर्वत श्रृंखला की पहाड़ी,की हरी भरी वादियों में जिला मुख्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ से 52 km दूर कटनी रेल मार्ग में बेलगहना क़स्बा स्थित है .

 जहा पर का भरने वाला साप्ताहिक बाज़ार रात 10 बजे से लेकर सुबेरे सुबेरे 4,5 बजे तक भरता है .और ताज्जुब यह भी की पूरी रात लोग खरीदी करते नज़र आते है ,चाहे आदमी हों या औरत और बच्चे .
खैर बाज़ार क्यों रात ..में लगता है के कारणों पर आने के पूर्व जरा बेलगहना कसबे और आसपास की जगह को भी जान ले 
यहा पर रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही एक तरफ उचे पहाड़ के दर्शन होते है to दुसरे मार्ग से कसबे की बस्तियों की और आते समय बाज़ार के .इसी पहाड़ी पर स्थित है सिद्धमुनि आश्रम, जहा पर बेलगहना में साल में दो बार- शरद पूर्णिमा और बसंत पंचमी को मेला भरता है।सतपुड़ा मैकल पर्वत श्रृंखला की पहाड़ी, बेलगहना में स्थित श्री.सिद्ध बाबा आश्रम में विराजमान स्वामी सोहमानंद जी ब्रह्मलीन हो गए। उन्होंने आश्रम परिसर में समाधी ली है ।
इनका उस पहाड़ी के ऊपर आश्रम और मंदिर है .जहा पर पारद(पारा ) से निर्मित छोटा सा शिवलिंग निर्मित है . जिसे मैंने स्वयं देखा है तथा आश्रम में तब जीवित श्री सिद्ध बाबा जी से इसके निर्माण की विधि भी जाना था . श्री अजीत जोगी जी(पूर्व मुख्यमंत्री ) का परिवार इन पर अपार श्रद्धा रखता है .
मै अपने प्रवास के दौरान वन विश्रामगृह के विश्राम गृह जो की इसी पहाड़ी के ऊपर स्थित है में रुका था . वहा पर से सामने दूर तक की पहाड़िया ,नदिया और जंगल के दृश्य किसी भी हिल स्टेशन की भांति मनमोहक दृश्य उत्पन्न कर रही थी .
उन पहाडियों से जंगल तथा बोगदे के बीच से गुजरती ट्रेन देख मन बचपन के दृश्य सामने आ गया जब कोयले इन्जिन वाली ट्रेन में अपनी नानी जी को पिपरिया छोड़ने जा रहा था ,जहा पर की मेरे मामा जी तब प्रोफेसर थे .मैंने बोगदे के अन्दर ट्रेन पहली बार देख उत्त्सुकता में खिड़की से अपनी मुंडी बाहर को किया ,और मेरा चेहरा कोयले की धुँआ से काला हो गया .उसके बाद नानी जी जब तक पिपरिया नही पहुच गयी ,मेरे चेहरा को धो लेने के बाद भी मुझे देखते ही खूब हंसती रही .
तथा मै खिड़की से बाहर झांकते हुए अनेको इन्द्रधनुष ,कलकल बहती नदी नाले और हरे भरे जंगल पहाड़ को देखकर खुश होता रहा 

गौरतलब है कि एसईसीआर जोन के अंतर्गत बिलासपुर से कटनी रेल लाइन पर भनवारटंक स्टेशन है। बिलासपुर रेल डिवीजन में कटनी रेल लाइन पर खोंगसरा-खोडरी के बीच घाट सेक्शन है। इसमें भनवारटंक के बाद बोगदा (टनल) पड़ता है। रेल-मार्ग पर एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है -- भनवारटंक। अचानकमार अभ्यारण्य के बीचो-बीच इस रेलवे स्टेशन पर उतरने का मतलब होता है, सीधे जंगल में उतरना। और रेल के डिब्बे में से सीधे किसी जंगल में उतरने का यह अनुभव जंगल में घुसने के किसी भी अनुभव से अलग और रोमांचक था। 


स्टेशन के पास ही मरही माता का मंदिर है। स्थानीय लोगों ने बताया कि साल 1984 में इंदौर-बिलासपुर एक्सप्रेस रेल हादसे के बाद माता का दर्शन हुआ। स्थानीय लोगों के अनुसार रेल हादसे के बाद स्थान विशेष पर मरही माता ने कुछ लोगों को दर्शन दिया। इसके बाद भक्तों ने दर्शन वाले स्थान पर छोटी से मंदिर का निर्माण किया। ऐसी मान्यता है कि मरही माता के आशीर्वाद से ही बिलासपुर कटनी रेल रूट का जंगली क्षेत्र भनवारंटक में हादसों की कभी पुनरावृत्ति नहीं हुई। माता इस दुरूह मार्ग से गुजरने वाले सभी यात्रियों की रक्षा करती हैं।


रेलवे पटरी के ठीक किनारे स्थित माता के सम्मान में गुजरनेवाली रेलगाड़ियों की रफ्तार भी धीमी हो जाती है। ऐसा बेहद कम देखने को मिलता है। माता को प्रणाम करने के बाद ही गाड़ी चालक आगे की यात्रा पूरी करते हैं।
बेलगहना से थोडा ही आगे है भनवारटंक। कुदरत ने इस जगह को ऐसी खूबसूरती बख्शी है कि आज नहीं, दशकों से यह हर किसी की निगाहों में चढ़ा हुआ है। अंग्रेजों ने करीब 115 साल पहले सन 1900 में यह ब्रिज बनवाया था। यह ब्रिज 115 फीट ऊंचा और 425 फीट लंबा ह
मात्र तीन पिलरों पर टिका है ब्रिज इनमें से बीच वाला पिलर 115 फीट ऊंचा है। तीनों पिलरों के बीच 100-100 फीट की दूरी है। इन्हें पक्की ईंटों से बनाया गया है जिन्हें चूने, बेल और गोंद से बनाए गए गारे से जोड़ा गया है।



108 साल पहले बना था टनल

ब्रिज बनाने के साथ उससे आगे 1907 में पहाड़ी खोदकर टनल का काम शुरू किया गया। 7 डिग्री कर्व लिए हुए यह टनल घोड़े की नाल के आकार का है। इस टनल की लंबाई 334 मीटर है। इसकी दीवारें ईंट और गारे की जुड़ाई वाली है। जो की इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है .
ब्रिटिश शासनकाल में इस ब्रिज और टनल को बनाना चुनौतीपूर्ण रहा होगा। बैलगाड़ी और खच्चरों के अलावा लेबरों से भी कंस्ट्रक्शन मटेरियल पहुंचवाने की जानकारी मिलती है। पहले पहाड़ की कटिंग कर समतल जगह बनाई गई होगी, फिर खुदाई की गई होगी।
खैर बाज़ार की बात करे तो दरअसल इस बाज़ार को रात में लगने के पीछे कटनी की और से आती पैसेंजर ट्रेन है ,जो की रात को 9 ,10 बजे के आसपास आती है और जिसमे बैठकर इसके पहले अनुपनगर ,शहडोल ,उमरिया के तरफ के बाज़ार से अपना समान बेचकर आता व्यापारी वहा पर उतर जाता है और सुबेरे की ट्रेन में बैठकर बिलसपुर के बाज़ार के लिए फिर निकल जाता है .वैसे सब्जियों ,स्थानीय फलो की बिक्री थोक में खरीदी करने का सबसे बड़ी जगह है .






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