अंग्रेज अफसर कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन के बारे में, जिन्होंने गांव को ठगों ,पिंडारियों से आजाद कराया था , उसी के नाम पर है जबलपुर इटारसी रेलवे मार्ग में स्लीमनाबादरोड स्टेशन (SLEEMNABAD ROAD )है।
पूरा विवरण पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे
...
(पुलिस के काम करने का तरीका भी कर्नल स्लीमन से प्रेरित ही है)
देवेन्द्र कुमार शर्मा सुंदरनगर रायपुर छत्तीसगढ़
ये है 931 कत्ल करने वाला बेरहम ठग, अंग्रेज अफसर ने दी थी इसे मौत
भोपाल। भारत में ब्रितानिया हुकूमत के समय खुलेआम हिंदुस्तानियों को फांसी देने वाला एक क्रूर अंग्रेज अफसर उस इलाके का राबिनहुड बन गया। सुनने में यह बात जरूर अटपटी लगती है पर है सोलह आना सच। यह बात मध्यप्रदेश के कटनी शहर में ब्रिटिश शासन के अंग्रेज अधिकारी कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन के लिए बिल्कुल सही हैं। इतना ही नहीं इस अंग्रेज अफसर के नाम से कटनी जिले में एक छोटा सा कस्बा भी आबाद है। कहा जाता है आए थे दुश्मन बन कर पर बन गए दोस्त, और दोस्त भी ऐसा-वैसा नहीं हजारों लोगों के जीवन की रक्षा करने वाला।जबलपुर इटारसी रेलवे मार्ग में स्लीमनाबाद स्टेशन है। इसी कसबे का नाम
अंग्रेज अधिकारी कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन के नाम से बसा है। तथा यहा पर उनकी याद मेंएक स्मारक भी बनाया गया है .
कटनी जिले में एक कस्बा है स्लीमनाबाद जो अंग्रेज अधिकारी कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन के नाम से बसा है। यह कस्बा उस अंग्रेज अधिकारी ने बसाया था जिसे इस क्षेत्र में ठग गिरोह को खत्म करने के लिए भेजा गया था । गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार सन् 1790-1840 के बीच इन गिरोह ने 931 सिरीयल किलिंग की जो कि विश्च रिकॉर्ड है। इस समस्या से निजात पाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक विशेष पुलिस दस्ता तैयार किया जिसकी कमान कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन को सौंपी गयी। कर्नल स्लीमन ने जब स्लीमनाबाद में अपनी छावनी बनाई तब भी इन ठग गिरोहों को खत्म करने का काम असंभव सा लगता था। लेकिन, अंग्रेज अधिकारी कर्नल हेनरी विलियम स्लीमन ने अपनी एलआईबी पुलिस बनाकर इन्हें न सिर्फ पकड़ा वरन सैकड़ों ठगों को मौत के घाट उतार दिया।
इतने साल गुजर जाने के बाद भी कर्नल स्लीमन के वंशज स्लीमनाबाद आते रहते हैं। कुछ साल पहले इंग्लेंड से स्लीमन के परिजन स्लीमनाबाद आए थे। कर्नल विलियम हेनरी स्लीमन की सातवीं पीढ़ी के वंशज स्टुअर्ट फिलिप स्लीमन लंदन निवासी स्टुअर्ट फिलिप स्लीमन, ससेक्स निवासी भाई जेरेमी विलियम स्लीमन के साथ भारत आए तो सबसे पहले स्लीमनाबाद ही आए। स्टुअर्ट फिलिप स्लीमन ने यहां लोगों से मुलाकात की और अपने पूर्वज के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी स्थानीय लोगों से ली। इससे पहले साल 2001 तथा 2003 में भी स्लीमन के वंशज स्लीमनाबाद आए थे।
ठगों का टीम वर्क
मध्य भारत के ठगों द्वारा ठगी की घटना को अंजाम देना कुशल संचालन, बेहतर समय-प्रबंधन और उत्तम टीम-वर्क के बेहतरीन उदाहरण के तौर पर भी याद किया जाता है। उस जमाने के ये ठग चार चरणों में ठगी को अंजाम देते थे। पहले चरण में ठगों की एक टोली जंगलों में छिपकर यात्रियों के समूहों का जायजा लेने की कोशिश करती थी कि किन यात्रियों के पास माल है। यह सुनिश्चित होने के बाद ये जानवारों की आवाज़ में (जिसे ये अपना कोड-वर्ड या ठगी जुबान कहते थे) अपनी दूसरी टोली को इसकी सूचना देते थे। दूसरे टोली यात्रियों के साथ उनके सहयात्रियों की तरह घुल-मिल जाते थे। साथ में भोजन पकाते थे, सोते थे और यात्रा करते थे। दूसरी टोली उन यात्रियों की एक अलग टोली बना लेती थी जिनके पास धन, सोने-चाँदी होते थे। फिर वे धोखे से उन्हें ज़हर खिलाकर या तो मार देते थे या बेहोश कर देते थे। लेकिन ये टोली उनसे धन लूटने का काम न करके अपनी तीसरी टोली को अपनी जुबान में बताकर अन्य यात्रियों के साथ लग जाती थी। तीसरी टोली आकर उन यात्रियों को पूरी तरह से लूट लेती थी। इस टोली के ठग साथ में खाकी या पीले रंग का रुमाल रखते थे, जिससे ये यात्रियों का गरौटा (गला) भी दबाते थे और सोने-चाँदी बाँध ले जाते थे। जाते-जाते ये अपनी चौथी टीम को सूचना दे जाते थे जो यात्रियों की लाशों को या तो कुएं में फेंक देती थी या पहले से तैयार क़ब्रों में दफऩ कर देती थी।
दो शताब्दी तक रहा खूनी ठगों का साम्राज्य
ठगी का यह पेशा कोई नया नहीं है। मध्यकालीन भारत में तो यह धंधा एक प्रथा के रूप में प्रचलित था, जिसमें ठग लोग भोले-भाले यात्रियों को जहर आदि के प्रभाव से मूर्छित करके अथवा उनकी हत्या करके उनका धन छीन लेते थे। ठगी प्रथा का समय मुख्य रूप से 17 वीं शताब्दी के शुरू से 19वीं शताब्दी अंत। तक माना जाता है। मध्य भारत में प्रकोप की तरह फैले- रुमाल में सिक्कों की गांठ लगा कर रुपये-पैसे और धन के लिए यात्रियों के सिर पर चोट करके लूटने वाले ठग और पिंडारियों का आतंक 19वीं सदी के प्रारंभ तक इतना बढ़ गया कि ब्रिटिश सरकार को इसके लिए विशेष व्यवस्था करनी पड़ी। ठगी प्रथा के कारण मुग़ल काल में नागपुर से उत्तर प्रदेश के शहर मिर्ज़ापुर तक बनी सडक़ पर यात्रियों का चलना मुश्किल हो गया था।
मप्र पुलिस और कर्नल स्लीमन
स्थानीय लोगों के अनुसार उनके पूर्वज कहा करते थे कि मध्यप्रदेश की पुलिस के काम करने का तरीका भी कर्नल स्लीमन की तरह ही है। माना जाता है कि वर्तमान में पुलिस का एलआईबी डिपार्टमेंट कर्नल के काम करने के तरीके ही देन है। स्लीमन ने ठग और पिंडारियों के खात्मे के लिए अपनी (एलआईबी) मुखबिरों तंत्र को इतना अच्छा बनाया कि कर्नल के मुखबिर ठगों के साथ मिल जाते थे और उन्हें पता भी नहीं चलता था। इस एक वजह से वह इतने सारे ठग गिरोह का सफाया कर सके।
फांसी का गवाह वह वृक्ष....
स्लीमनाबाद थाने में लगा बड़ा सा पीपल पेड़ पर ही ठग पिंडारियों को फांसी दी जाती थी। कुछ लोग मानते हैं कि जगह तो यही थी पर उस समय यहां पेड़ नहीं था। स्लीमनाबाद थाना का पुराना भवन कर्नल स्लीमन की चौकी माना जाता है। यहां स्लीमन की याद में एक स्मारक बनाया गया है। साथ ही दीवार पर स्लीमनाबाद की उत्पति संबंधी लेख भी लिखा है। जिसमें मप्र पुलिस का जनक कर्नल स्लीमन को बताया गया है।